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कन्या संक्रांति: सूर्य देव की कृपा पाने के उपाय

कन्या संक्रांति का पर्व सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व रखता है। इस दिन विशेष उपाय और दान करने से सूर्य देव की कृपा प्राप्त की जा सकती है। जानें इस दिन के शुभ मुहूर्त, अर्घ्य देने की विधि और दान के महत्व के बारे में। 17 सितंबर को मनाई जाने वाली इस संक्रांति पर सूर्य की स्थिति को मजबूत करने के उपाय भी जानें।
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कन्या संक्रांति: सूर्य देव की कृपा पाने के उपाय

सूर्य देव की कृपा का महत्व


कन्या संक्रांति का महत्व
कन्या संक्रांति के दिन सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व होता है। साल में 12 संक्रांति होती हैं, जो सूर्य देव के 12 राशियों में प्रवेश करने पर मनाई जाती हैं। जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करते हैं, तब इसे कन्या संक्रांति कहा जाता है।


इस दिन स्नान, दान, तप और श्राद्ध अनुष्ठान करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इसलिए, इस दिन कुछ विशेष कार्य करना आवश्यक है ताकि सूर्य देव की कृपा से अच्छे परिणाम मिल सकें।


कुंडली में सूर्य की स्थिति को मजबूत करें

इस वर्ष कन्या संक्रांति 17 सितंबर को मनाई जाएगी। यदि आप इस दिन कुछ विशेष कार्य करते हैं, तो इससे सूर्य देव की कृपा प्राप्त हो सकती है और आपकी कुंडली में सूर्य की स्थिति भी मजबूत होगी।


कन्या संक्रांति का शुभ मुहूर्त


  • कन्या संक्रांति पुण्य काल – सुबह 6:07 से दोपहर 12:15 तक

  • कन्या संक्रांति महा पुण्य काल – सुबह 6:07 से सुबह 8:10 तक

  • कन्या का समय – देर रात 1:55 से


सूर्य देव को अर्घ्य देने का तरीका

कन्या संक्रांति के दिन सूर्योदय से पहले उठें और स्नान कर लें। फिर एक तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें लाल फूल और रोली डालें। इसके बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें और इस दौरान "ॐ सूर्याय नम:" या "ॐ घृणि सूर्याय नम:" मंत्र का जप करें।


दान करने की विधि

कन्या संक्रांति के दिन सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदी में स्नान करें। यदि यह संभव न हो, तो घर पर गंगाजल मिलाकर स्नान करें। इसके बाद गरीबों और जरूरतमंदों को गेहूं, लाल चंदन, लाल फल, केसर, लाल वस्त्र, और गुड़ का दान करें। इससे सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है और कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत होती है।


सूर्य देव के मंत्र

ॐ सूर्यनारायणाय: नम:।


ऊँ घृणि सूर्याय नम:


सूर्य ग्रह के 12 मंत्र:


ॐ आदित्याय नम:।


ॐ सूर्याय नम:।


ॐ रवेय नम:।


ॐ पूषणे नम:।


ॐ दिनेशाय नम:।


ॐ सावित्रे नम:।


ॐ प्रभाकराय नम:।


ॐ मित्राय नम:।


ॐ उषाकराय नम:।


ॐ भानवे नम:।


ॐ दिनमणाय नम:।


ॐ मातंर्डाय नम:।