करवा चौथ: विवाहित महिलाओं का महत्वपूर्ण पर्व

करवा चौथ का महत्व
करवा चौथ एक ऐसा त्योहार है जो विवाहित महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन, सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक, पत्नियाँ अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए उपवास रखती हैं। पूरे दिन बिना पानी और भोजन के रहना कठिन होता है, लेकिन प्रेम और सम्मान के साथ महिलाएं इस व्रत को निभाती हैं। यह पर्व हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है, और यह पति-पत्नी के रिश्ते की पवित्रता का प्रतीक है। करवा चौथ का व्रत न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह नारी शक्ति का भी प्रतीक है, जो अपने दृढ़ संकल्प से अपने पति की रक्षा करती हैं।
व्रत की प्रक्रिया
आधुनिक समाज में भी महिलाएं अपने पतियों की दीर्घायु के लिए करवा चौथ का व्रत करती हैं। इस दिन, पत्नियाँ अपने पति के प्रति सभी गिले-शिकवे भूलकर एकाग्रता से व्रत करती हैं। 'करवा' का अर्थ मिट्टी का बर्तन और 'चौथ' का अर्थ चतुर्थी है। इस दिन मिट्टी के करवे का विशेष महत्व होता है। विवाहित महिलाएं पूरे साल इस त्योहार का इंतजार करती हैं और इसकी सभी रस्मों को श्रद्धा के साथ निभाती हैं।
पूजन विधि
इस व्रत को करने का अधिकार सभी सौभाग्यवती महिलाओं को है। जो महिलाएं अपने पतियों की लंबी उम्र और स्वास्थ्य की कामना करती हैं, वे इस व्रत को करती हैं। पूजा के दौरान, शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश और चंद्रमा की स्थापना की जाती है। इसके बाद, लड्डू का नैवेद्य अर्पित किया जाता है। दिनभर उपवास रखने के बाद, चंद्रमा को अर्ध्य देकर भोजन ग्रहण करने का विधान है।
करवा चौथ की कथा
करवा चौथ की एक प्रसिद्ध कथा है जिसमें द्रोपदी ने अपने पति अर्जुन की सुरक्षा के लिए व्रत किया था। इस व्रत के माध्यम से महिलाएं अपने पतियों की दीर्घायु की कामना करती हैं। यह पर्व न केवल धार्मिक है, बल्कि यह प्रेम और समर्पण का भी प्रतीक है।
सुख और समृद्धि का प्रतीक
इस व्रत को श्रद्धा और भक्ति के साथ करने से सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति मिलती है। भारत में चौथ माता का प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्थित है, जो इस पर्व की महत्ता को दर्शाता है।