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कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी: जीवन के संतुलन का पर्व

कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो यमराज की पूजा, नरकासुर के वध और देवी काली के आह्वान के माध्यम से जीवन के संतुलन को दर्शाता है। इसे छोटी दीवाली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन दीपदान की परंपरा और हनुमान जन्मोत्सव का आयोजन किया जाता है। जानें इस पर्व के पीछे की कहानियाँ और अनुष्ठान के महत्व के बारे में।
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कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी: जीवन के संतुलन का पर्व

कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी का महत्व

कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी एक बहुआयामी पर्व है, जो कर्म के सिद्धांत (यमराज), न्याय की स्थापना (नरकासुर वध) और शक्ति के आह्वान (काली चौदस) के माध्यम से जीवन की नश्वरता और दिव्यता के बीच संतुलन सिखाता है। यम दीप से लेकर नरकासुर की पराजय तक हर अनुष्ठान यह संकल्प दोहराता है कि अंधकार कितना भी घना क्यों न हो, प्रकाश की विजय निश्चित है।


19 अक्टूबर को मनाया जाने वाला यम चतुर्दशी

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की तिथि भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखती है। इसे छोटी दीवाली, नरक चतुर्दशी, रूप चौदस, काली चौदस आदि नामों से जाना जाता है। पौराणिक ग्रंथों में इसका उल्लेख यमराज की पूजा, नरकासुर के संहार और देवी काली के शक्ति प्रदर्शन के रूप में किया गया है। एक मान्यता के अनुसार, यह दिन श्रीराम भक्त हनुमान का जन्म दिवस भी है, इसलिए इस दिन हनुमान जन्मोत्सव भी मनाया जाता है।


यमराज का महत्व

इस पवित्र दिन का सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान मृत्यु के देवता यमराज से संबंधित है। इसलिए इसे यम चतुर्दशी या यम दिवस कहा जाता है। यमराज केवल प्राण हरने वाले देवता नहीं हैं, बल्कि वे धर्मराज भी हैं, जो जीवों के कर्मों का निष्पक्ष मूल्यांकन करते हैं। यमराज की उत्पत्ति सूर्यदेव और उनकी भार्या संज्ञा से हुई थी।


दीपदान की परंपरा

यम चतुर्दशी की संध्या पर यम को दीपदान करने की परंपरा इस पर्व का केंद्रीय अनुष्ठान है। इस दिन सरसों के तेल का दीया जलाकर उसे घर के बाहर किसी ऊंचे स्थान पर रखा जाता है। यह दीप यमराज को समर्पित किया जाता है। इस दीपदान की परंपरा पुण्यात्मा राजा रन्ति देव से जुड़ी है।


नरकासुर का वध

यम चतुर्दशी के साथ ही यह तिथि नरक चतुर्दशी के रूप में भी प्रसिद्ध है, जिसकी कथा दैत्यराज नरकासुर के वध से जुड़ी है। भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया और सभी 16,100 कन्याओं को बंधन से मुक्त किया। इस उपलक्ष्य में नगरवासियों ने नगर को दीपों से प्रकाशित किया और उत्सव मनाया।


काली चौदस का महत्व

कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को विशेष रूप से गुजरात आदि पश्चिमी राज्यों में काली चौदस या भूत पूजा के रूप में मनाया जाता है। यह शक्ति की देवी मां काली की पूजा का दिन है। इस दिन माता काली ने दुष्टों और अत्याचारियों का संहार किया था।


सारांश

इस प्रकार, कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी एक ऐसा पर्व है जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को संतुलित करता है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि अंधकार चाहे कितना भी गहरा हो, प्रकाश की विजय अवश्य होती है। यह छोटी दीवाली अगली अमावस्या पर आने वाली महादीवाली के लिए शारीरिक, मानसिक और आत्मिक रूप से शुद्ध करती है।