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कार्तिक पूर्णिमा: महादेव का त्रिपुरासुर का संहार और धार्मिक महत्व

कार्तिक पूर्णिमा का दिन भगवान शिव के त्रिपुरासुर के संहार का प्रतीक है। इस दिन का धार्मिक महत्व अत्यधिक है, जिसमें गंगा स्नान और दीप दान का विशेष फल होता है। जानें इस दिन के व्रत कथा और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के बारे में, जो इस पर्व को और भी खास बनाते हैं।
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कार्तिक पूर्णिमा: महादेव का त्रिपुरासुर का संहार और धार्मिक महत्व

कार्तिक पूर्णिमा का महत्व

कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था, इसलिए इसे त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। यदि इस दिन कृतिका नक्षत्र होता है, तो इसे महाकार्तिकी माना जाता है। भरणी नक्षत्र होने पर यह विशेष फलदायी होती है, जबकि रोहिणी नक्षत्र में इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। मत्स्य पुराण के अनुसार, इस दिन संध्या के समय भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। गंगा स्नान और दीप दान का फल इस दिन दस यज्ञों के बराबर होता है। ब्राह्मणों को आदरपूर्वक आमंत्रित कर भोजन कराना चाहिए।


महापुनीत पर्व

ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य ने इस दिन को महापुनीत पर्व माना है। इस दिन गंगा स्नान, दीप दान, यज्ञ और उपासना का विशेष महत्व है। यदि कृतिका में चंद्रमा और विशाखा में सूर्य हो, तो यह पद्मक योग बनाता है, जो पुष्कर में भी दुर्लभ है। संध्या काल में त्रिपुरोत्सव मनाने से पुनर्जन्म के कष्ट समाप्त होते हैं। इस दिन कृतिका में विश्व स्वामी का दर्शन करने से ब्राह्मण सात जन्मों तक वेदपाठी और धनवान बनते हैं। चंद्रोदय पर शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनसूया और क्षमा का पूजन करना चाहिए।


कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा

कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा

एक बार त्रिपुर राक्षस ने प्रयागराज में एक लाख वर्षों तक कठोर तप किया। इसके प्रभाव से सभी जीव और देवता भयभीत हो गए। देवताओं ने उसे तप से भंग करने के लिए अप्सराएं भेजीं, लेकिन वे सफल नहीं हो पाईं। अंततः ब्रह्मा जी स्वयं उसके सामने आए और वर मांगने को कहा। त्रिपुर ने वर में मांगा, 'न देवताओं के हाथों मरूं, न मनुष्य के हाथों।'
इस वरदान के बल पर त्रिपुर ने अत्याचार करना शुरू कर दिया और कैलाश पर भी चढ़ाई कर दी। इसके परिणामस्वरूप भगवान शिव और त्रिपुर के बीच भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें शिव ने ब्रह्मा और विष्णु की सहायता से त्रिपुर का संहार किया। तभी से इस दिन का महत्व बढ़ गया।


क्षीर सागर दान

इस दिन क्षीर सागर दान का अनंत महत्व है। इसे 24 अंगुल के बर्तन में दूध भरकर उसमें स्वर्ण या रजत की मछली डालकर किया जाता है। यह उत्सव दीपावली की तरह दीप जलाकर सायंकाल मनाया जाता है।