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क्या जन्माष्टमी की तिथि में अंतर भारत की सांस्कृतिक विविधता का प्रतीक है?

कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने जन्माष्टमी की तिथि में भिन्नता को लेकर एक दिलचस्प सवाल उठाया है। जहां भारत के अधिकांश हिस्सों में यह त्योहार 16 अगस्त 2025 को मनाया जाएगा, वहीं केरल में इसे 14 सितंबर को मनाने की परंपरा है। इस भिन्नता के पीछे के कारणों को समझते हुए, थरूर ने यह भी पूछा कि क्या हमें इस तरह के प्रमुख पर्व को एक साथ मनाना चाहिए या क्षेत्रीय परंपराओं का सम्मान करना चाहिए। मथुरा में जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया गया, जहां लाखों श्रद्धालु एकत्र हुए।
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क्या जन्माष्टमी की तिथि में अंतर भारत की सांस्कृतिक विविधता का प्रतीक है?

शशि थरूर का जन्माष्टमी पर सवाल

कांग्रेस के सांसद शशि थरूर ने 17 अगस्त को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर जन्माष्टमी की तिथि को लेकर एक दिलचस्प चर्चा शुरू की। उन्होंने बताया कि भारत के अधिकांश हिस्सों में यह त्योहार 16 अगस्त 2025 को मनाया जाएगा, जबकि केरल में इसे 14 सितंबर को मनाने की परंपरा है। इस भिन्नता को देखकर थरूर ने मजाक में पूछा कि क्या भगवान दो अलग-अलग दिनों में जन्म ले सकते हैं, क्योंकि केरलवासी तो क्रिसमस को एक ही दिन मनाते हैं!


केरल में जन्माष्टमी की तिथि का कारण

इस प्रश्न पर कई यूजर्स ने धार्मिक कैलेंडरों की विविधता का उल्लेख किया। भारत में त्योहारों की तिथि चंद्रमा के आधार पर निर्धारित होती है। अधिकांश क्षेत्रों में जन्माष्टमी भाद्रपद या श्रावण महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। वहीं, केरल में मलयालम कैलेंडर का पालन किया जाता है, जिसमें रोहिणी नक्षत्र की उपस्थिति का भी महत्व है, क्योंकि मान्यता है कि भगवान कृष्ण का जन्म इसी नक्षत्र में हुआ था। जब तक अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र एक साथ नहीं आते, तब तक जन्माष्टमी नहीं मनाई जाती, जिससे तिथि में लगभग छह हफ्ते का अंतर आ जाता है.


भारत की कैलेंडर विविधता पर थरूर की सोच

भारत में विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग कैलेंडर का उपयोग होता है। उत्तर भारत में विक्रम संवत, केरल में मलयालम पंचांग और वैश्विक स्तर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर का पालन किया जाता है। यह विविधता हमारी सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है। थरूर ने यह सवाल उठाया कि क्या जन्माष्टमी जैसे महत्वपूर्ण पर्व को पूरे देश में एक साथ मनाया जाना चाहिए, जैसे क्रिसमस एक निश्चित तारीख को मनाया जाता है, या फिर क्षेत्रीय परंपराओं का सम्मान करते हुए इस विविधता को बनाए रखना चाहिए?


मथुरा में जन्माष्टमी का उत्सव

इस बीच, मथुरा में जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया गया। भगवान कृष्ण की जन्मभूमि पर लाखों श्रद्धालु एकत्र हुए। शुक्रवार रात से ही राधा कृष्ण मंदिर के बाहर लंबी कतारें लगनी शुरू हो गई थीं। मथुरा शहर को सजाया गया था और विभिन्न स्थानों पर झांकियां, सांस्कृतिक प्रस्तुतियां और भक्तों के लिए नि:शुल्क भोजन-पानी की व्यवस्था की गई थी, जिससे पूरा शहर एक भव्य उत्सव स्थल में बदल गया।