गणाधिप संकष्टी व्रत के नियम: ध्यान रखने योग्य बातें
भगवान गणेश को समर्पित विशेष दिन
Ganadhipa Chaturthi Vrat Niyam: सनातन धर्म में गणाधिप संकष्टी का दिन अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह दिन भगवान गणेश को समर्पित है। इस दिन व्रत और पूजा करने से सभी बाधाएं दूर होती हैं और इच्छाएं पूरी होती हैं। हालांकि, व्रत का सही फल पाने के लिए कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक है, ताकि पूजा में कोई विघ्न न आए। आइए जानते हैं इस दिन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें।
चंद्र दर्शन और अर्घ्य का महत्व
संकष्टी चतुर्थी का व्रत चंद्र दर्शन और अर्घ्य देने के बाद ही पूरा माना जाता है। कई लोग रात में चंद्रोदय का इंतजार किए बिना ही व्रत खोल लेते हैं, जिससे व्रत अधूरा रह जाता है। चंद्रमा को दूध और जल मिश्रित अर्घ्य देना आवश्यक है, क्योंकि इससे कुंडली से चंद्र दोष भी समाप्त होता है।
सात्विक भोजन का सेवन
व्रत के दिन केवल शुद्ध सात्विक भोजन का सेवन करना चाहिए। लहसुन, प्याज, मांसाहार और मदिरा का सेवन इस दिन पूरी तरह से वर्जित है। इसके अलावा, व्रत के दौरान मन और शरीर की पवित्रता बनाए रखनी चाहिए। केवल फलाहार या सात्विक आहार ही लें।
तुलसी का प्रयोग न करें
भगवान गणेश की पूजा में तुलसी के पत्ते अर्पित नहीं किए जाते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, गणेश जी ने तुलसी को अपनी पूजा में वर्जित रहने का श्राप दिया था। इसलिए, गणेश जी की पूजा में दूर्वा घास अर्पित करें, जो उन्हें प्रिय है। दूर्वा की 21 गांठें बनाकर चढ़ाना शुभ माना जाता है।
अशुभ रंगों से बचें
गणेश जी की पूजा में काले या नीले रंग के वस्त्र पहनना अशुभ माना जाता है। इस दिन लाल, पीले या हरे रंग के कपड़े पहनें। लाल रंग गणेश जी को प्रिय है और यह सौभाग्य का प्रतीक है।
नकारात्मकता से दूर रहें
व्रत के दिन घर में नकारात्मक माहौल बनाना, झगड़ा करना या किसी को अपशब्द कहना पूजा के फल को नष्ट कर देता है। इसलिए, पूरे दिन शांति, सकारात्मकता और पवित्रता बनाए रखें। साथ ही, "ॐ गं गणपतये नम:" मंत्र का जाप करते रहें और गणेश जी की कथा सुनें।
