चातुर्मास 2025: धार्मिक अनुष्ठान और नियमों का पालन

चातुर्मास का महत्व
चातुर्मास 2025 : आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है, जिसे कुछ स्थानों पर 'पद्मनाभा' भी कहा जाता है। यह एकादशी तब आती है जब सूर्य मिथुन राशि में प्रवेश करता है। इसी दिन से चातुर्मास की शुरुआत मानी जाती है। भगवान श्री हरि विष्णु इस दिन से क्षीरसागर में शयन करते हैं और लगभग चार महीने बाद तुला राशि में सूर्य के जाने पर उन्हें उठाया जाता है, जिसे देवोत्थानी एकादशी कहा जाता है। इस अवधि के दौरान सभी मांगलिक कार्य, जैसे विवाह, स्थगित कर दिए जाते हैं। हालांकि, हवन, यज्ञ और तप करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इस समय में अनुशासित जीवनशैली अपनाने से व्यक्ति पुण्य अर्जित करता है और मानसिक शांति तथा आध्यात्मिक बल प्राप्त करता है।
चातुर्मास के दौरान पालन करने वाले नियम
ध्यान और कीर्तन
चातुर्मास में प्रतिदिन धार्मिक ग्रंथों जैसे श्रीमद्भगवद्गीता, रामायण और भागवत कथा का अध्ययन करना चाहिए। भजन, ध्यान और कीर्तन को अपनी दिनचर्या में शामिल करें। इस दौरान आने वाले व्रत और पर्वों का पालन करना आवश्यक है।
मसालेदार चीजों से बचें
इस अवधि में शुद्ध, सात्विक और घर में बने भोजन का सेवन करें। तला-भुना, बाहर का खाना और मसालेदार चीजों से दूर रहें।
शाक-पात का सेवन न करें
चातुर्मास के दौरान गुड़, तेल, शहद, मूली, परवल, बैंगन और अन्य शाक-पात का सेवन नहीं करना चाहिए। परिवार के सदस्यों के अलावा किसी अन्य से प्राप्त दही और भात का सेवन न करें। चातुर्मास व्रत का पालन करने वालों को एक ही स्थान पर देव-अर्चना करनी चाहिए और क्रोध तथा नकारात्मकता से बचना चाहिए।