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जन्माष्टमी पर व्रत का पारण: विधि और सही समय

जन्माष्टमी का पर्व श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। व्रत का पारण सही समय और विधि से करना आवश्यक है। जानें कब और कैसे करें व्रत का पारण, साथ ही दान का महत्व भी। इस लेख में हम आपको व्रत के पारण की विधि और समय के बारे में विस्तार से बताएंगे।
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जन्माष्टमी पर व्रत का पारण: विधि और सही समय

भगवान श्रीकृष्ण की पूजा से मिलती है सुख-समृद्धि


निष्ठा से पूजा करने पर भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं
जन्माष्टमी का पर्व पूरे देश में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप की विधिपूर्वक पूजा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। यदि श्रद्धालु पूरी निष्ठा से व्रत करते हैं, तो भगवान श्रीकृष्ण उनकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि लाते हैं।


हालांकि, जन्माष्टमी का व्रत कठिन होता है, क्योंकि इसमें पूरे दिन उपवास रखना पड़ता है। श्रद्धालु इस दिन निर्जल या फलाहार व्रत करते हैं। व्रत का समापन पारण के समय सही विधि से करना आवश्यक है, तभी पूजा सफल होती है। आइए जानते हैं व्रत के पारण की विधि और सही समय।


व्रत के पारण का शुभ समय

कई श्रद्धालु रात 12 बजे भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव के बाद व्रत खोलते हैं, जब अष्टमी तिथि अगले दिन सुबह तक रहती है। शास्त्रों में कहा गया है कि अष्टमी तिथि समाप्त होने के बाद ही व्रत तोड़ना श्रेष्ठ होता है।


साल 2025 में अष्टमी तिथि 16 अगस्त की रात 9:34 बजे समाप्त होगी। इस समय के बाद पारण किया जा सकता है। कुछ भक्त रोहिणी नक्षत्र के अंत के बाद व्रत खोलते हैं, जो 17 अगस्त की सुबह 4:38 बजे से शुरू होकर 18 अगस्त को सुबह 3:17 बजे समाप्त होगा।


पारण की विधि: केवल सात्त्विक भोजन करें

व्रत खोलने से पहले भगवान श्रीकृष्ण की विधिवत पूजा, भोग और आरती करें। माखन-मिश्री, पंजीरी और फल आदि का भोग भगवान को अर्पित करें। पारण के बाद केवल सात्त्विक भोजन करें, जिसमें प्याज, लहसुन या तामसिक पदार्थ न हों।


दान का महत्व

व्रत खोलने के बाद अपनी क्षमता अनुसार दान-पुण्य अवश्य करें। पारण करते समय मन में भगवान का स्मरण करते रहें।


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