जितिया व्रत: संतान की लंबी उम्र के लिए जीवित्पुत्रिका चालीसा का महत्व

जीवन में सुख-शांति के लिए तीन दिनों का व्रत
जितिया व्रत, नई दिल्ली: जितिया व्रत को अत्यंत फलदायी माना जाता है। इस अवसर पर माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और खुशहाल जीवन के लिए व्रत करती हैं। यह व्रत तीन दिनों तक चलता है, जिसमें भगवान जीमूतवाहन और देवी जीविता की पूजा की जाती है। इसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है।
इस व्रत के दौरान जीवित्पुत्रिका चालीसा का पाठ करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है। इस चालीसा का पाठ करने से व्रत का पूरा फल प्राप्त होता है और संतान से जुड़ी सभी समस्याएं दूर होती हैं।
जितिया व्रत में जीवित्पुत्रिका चालीसा का पाठ इस प्रकार किया जाता है:
जीवित्पुत्रिका चालीसा
।।जीवित्पुत्रिका चालीसा।।
।।दोहा।।
- जय जय जीमूतवाहन, जय जय जीवित्पुत्रिका।
मात-पिता की रक्षा करो, हर लो दु:ख दरिद्रता।।
।।चौपाई।।
- अश्विन मास कृष्ण पक्ष अष्टमी, नाम तुम्हारा जीवित्पुत्रिका।
सुख-शांति तुम दो माता, तुम बिन नहीं कोई सहारा।। - पुत्र की रक्षा करो माता, तुम तो हो जग पालनहारा।
पूत-सुपूत बनाओ माता, सुख-शांति तुम देना।। - कथा सुनी जब जीमूतवाहन की, दुख की घड़ी में तुम याद आई।
तुमने पुत्र को दिया जीवन, तुम्हारी कृपा सदा बनी रहे।। - जय जय माता तुम सबकी, हर लो हर संकट तुम हमारी।
बाल-बाल को रखो सुरक्षित, तुम्हारी महिमा सबसे न्यारी।। - जो जन चालीसा ये पढ़े, हर इच्छा उसकी पूरी हो।
मात-पिता को सुख-शांति मिले, और घर में धन-संपदा हो।। - पुत्र की रक्षा तुम ही करती, तुम तो जग की पालनहारी।
तुम्हारी दया से सब कुछ मिले, तुम सबकी हो पालनहारी।।
।।दोहा।।
- जीवित्पुत्रिका माता, कृपा करो सब पर।
- संतान को सुखी रखो, और दूर करो हर संकट।।
शिव रक्षा स्तोत्र
।।शिव रक्षा स्तोत्र।।
ॐ अस्य श्री शिवरक्षास्तोत्रमंत्रस्य याज्ञवल्क्यऋषि:,
श्री सदाशिवो देवता, अनुष्टुपछन्द: श्री सदाशिवप्रीत्यर्थं शिव रक्षा स्तोत्रजपे विनियोग:।
चरितम् देवदेवस्य महादेवस्य पावनम्।
अपारम् परमोदारम् चतुर्वर्गस्य साधनम्।
गौरी विनायाकोपेतम् पंचवक्त्रं त्रिनेत्रकम्।
शिवम् ध्यात्वा दशभुजम् शिवरक्षां पठेन्नर:।
गंगाधर: शिर: पातु भालमर्धेन्दु शेखर:।
नयने मदनध्वंसी कर्णौ सर्पविभूषण:।
घ्राणं पातु पुरारातिमुर्खं पातु जगत्पति:।
जिह्वां वागीश्वर: पातु कन्धरां शितिकन्धर:।
श्रीकण्ठ: पातु मे कण्ठं स्कन्धौ विश्वधुरन्धर:।
भुजौ भूभार संहर्ता करौ पातु पिनाकधृक्।
हृदयं शङ्कर: पातु जठरं गिरिजापति:।
नाभिं मृत्युञ्जय: पातु कटी व्याघ्रजिनाम्बर:।
सक्थिनी पातु दीनार्तशरणागत वत्सल:।
उरु महेश्वर: पातु जानुनी जगदीश्वर:।
जङ्घे पातु जगत्कर्ता गुल्फौ पातु गणाधिप:।
चरणौ करुणासिन्धु: सर्वाङ्गानि सदाशिव:।
एताम् शिवबलोपेताम् रक्षां य: सुकृती पठेत।
स भुक्त्वा सकलान् कामान् शिवसायुज्यमाप्नुयात।
गृहभूत पिशाचाश्चाद्यास्त्रैलोक्ये विचरन्ति ये।
दूराद् आशु पलायन्ते शिवनामाभिरक्षणात।
अभयम् कर नामेदं कवचं पार्वतीपते:।
भक्त्या बिभर्ति य: कण्ठे तस्य वश्यं जगत्त्रयम्।
इमां नारायण: स्वप्ने शिवरक्षां यथाऽदिशत्।
प्रातरुत्थाय योगीन्द्रो याज्ञवल्क्यस्तथाऽलिखत्।