जितिया व्रत: संतान की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण पर्व
जितिया व्रत, जिसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है, हर साल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में महिलाओं द्वारा अपने बच्चों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए किया जाता है। इस दिन भगवान जीमूतवाहन की पूजा की जाती है, जो एक पौराणिक राजकुमार हैं। जानें इस व्रत का महत्व, पूजा विधि और इसे कैसे मनाना चाहिए।
Sep 9, 2025, 18:28 IST
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जितिया व्रत का महत्व
हर वर्ष आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जितिया व्रत का आयोजन किया जाता है। इसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है, जो कि विशेष महत्व रखता है। यह व्रत मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में मनाया जाता है। महिलाएं इस व्रत को अपने बच्चों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए करती हैं। इस बार जितिया व्रत 14 सितंबर को मनाया जाएगा। आइए जानते हैं कि इस दिन किस देवता की पूजा की जाती है।
किस देवता की पूजा होती है
भगवान जीमूतवाहन की पूजा
जितिया व्रत के दौरान भगवान जीमूतवाहन की पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जीमूतवाहन एक गंघर्व राजकुमार थे। धार्मिक मान्यता के अनुसार, उन्होंने एक नागिन के पुत्र को बचाने के लिए अपने आपको गरुड़ के हवाले कर दिया था। तभी से उनकी पूजा की जाने लगी और माताएं अपने बच्चों की रक्षा के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत करने लगीं।
जितिया व्रत का महत्व
संतान की लंबी उम्र के लिए
महिलाएं इस व्रत को अपने बच्चों की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए करती हैं। यह माना जाता है कि जितिया व्रत रखने से संतान के सभी कष्ट और दुख दूर हो जाते हैं। एक मान्यता के अनुसार, जो महिलाएं इस व्रत का पालन करती हैं, वे जीवन में कभी संतान से वियोग का सामना नहीं करतीं।
कैसे करें व्रत?
व्रत की विधि
व्रत के दिन सूर्योदय से पहले फल, मिठाई, चाय और पानी का सेवन किया जाता है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने के बाद स्वच्छ कपड़े पहनें। फिर सूर्य देव को जल अर्पित करें। जीमूतवाहन के समक्ष दीपक जलाकर पूजा करें और व्रत का संकल्प लें। विधि-विधान से भगवान वासुदेव और जीमूतवाहन का पूजन करें। इसके बाद व्रत कथा का पाठ करें। पूरा दिन निर्जला व्रत रखा जाता है, और अगले दिन सूर्य देव को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है। व्रत खोलने के समय चावल, मरुवा की रोटी, तोरई, रागी और नोनी का साग खाया जाता है।