जीवित्पुत्रिका व्रत: माताओं की संतान के लिए विशेष पूजा विधि और महत्व
जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे जितिया भी कहा जाता है, माताओं द्वारा अपने बच्चों की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए मनाया जाता है। यह व्रत हर साल आश्विन मास की अष्टमी तिथि को होता है और इसमें विशेष पूजा विधि का पालन किया जाता है। इस लेख में जानें जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इसके लाभ। माताएं इस अवसर पर भगवान जीमूतवाहन की पूजा करती हैं और संतान के लिए विशेष धागा पहनाने की परंपरा का पालन करती हैं।
Sep 13, 2025, 13:15 IST
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जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व
14 सितंबर को जीवित्पुत्रिका व्रत मनाया जाता है, जिसमें माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए उपवास करती हैं। इसे जितिया व्रत भी कहा जाता है। इस दिन माताएं अपने संतान के लिए सुखद जीवन की कामना करती हैं। आइए जानते हैं जीवित्पुत्रिका व्रत की पूजा विधि और इसके महत्व के बारे में।
जीवित्पुत्रिका व्रत की जानकारी
हिंदू धर्म में माताएं संतान की सुरक्षा और सुखद जीवन के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत करती हैं। यह व्रत हर साल आश्विन मास की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है और इसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। यह व्रत तीन दिनों तक चलता है, जिसमें नहाय-खाय से लेकर निर्जल उपवास और पारण की परंपरा होती है। इस व्रत की शुरुआत नहाय-खाय से होती है और इसके बाद निर्जल उपवास रखा जाता है। अंत में पारण किया जाता है। इस दौरान भगवान जीमूतवाहन की पूजा की जाती है।
जीवित्पुत्रिका व्रत का शुभ मुहूर्त
यह पर्व विशेष रूप से पूर्वी भारत के राज्यों जैसे बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में धूमधाम से मनाया जाता है। वर्ष 2025 में इसका आरंभ 13 सितंबर को नहाय-खाय से होगा। इसके बाद 14 सितंबर को महिलाएं विधिपूर्वक जीवित्पुत्रिका व्रत रखेंगी और 15 सितंबर को व्रत का पारण किया जाएगा। यह व्रत 14 सितंबर को सुबह 5:04 बजे शुरू होगा और 15 सितंबर को सुबह 3:06 बजे समाप्त होगा।
जीवित्पुत्रिका व्रत में लाभकारी उपाय
जितिया व्रत में जीमूतवाहन की पूजा का विशेष महत्व है। जीमूतवाहन, गंधर्व राजकुमार थे, जिन्होंने एक नागिन के पुत्र को बचाने के लिए खुद को गरुड़ को अर्पित कर दिया था। उनकी पूजा करने से संतान की रक्षा होती है।
पीपल के पेड़ की पूजा भी इस दिन बहुत शुभ मानी जाती है। महिलाएं पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर कथा सुनती हैं और उसकी परिक्रमा करती हैं। पीपल को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास माना जाता है, जिससे सभी दुख दूर होते हैं।
इस दिन व्रत कथा का पाठ करना भी महत्वपूर्ण है। जीमूतवाहन की कहानी सुनने से व्रत का पूरा फल मिलता है।
व्रत के पारण के बाद गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन और वस्त्रों का दान करना भी आवश्यक है। ऐसा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा का भी इस दिन विशेष महत्व है।
जितिया धागा पहनने का महत्व
जितिया व्रत के दौरान महिलाएं अपने बच्चों को एक विशेष धागा पहनाती हैं, जिसे जितिया धागा कहा जाता है। यह धागा संतान के गले में पहनाया जाता है, जिससे उन्हें दीर्घायु और स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलता है।
नहाए-खाए की परंपरा
जितिया व्रत से एक दिन पहले सप्तमी तिथि को ‘नहाए-खाए’ की परंपरा होती है। इस दिन महिलाएं पवित्र जल में स्नान करती हैं और भगवान जीमूतवाहन की पूजा करती हैं।
जीवित्पुत्रिका व्रत की पूजा विधि
जितिया व्रत के दिन माताएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। घर के मंदिर में एक चौकी रखें और उस पर लाल कपड़ा बिछाएं। फिर सूर्य नारायण की मूर्ति स्थापित करें और उन्हें दूध से स्नान कराएं। पूजा विधि के अनुसार जीमूतवाहन की प्रतिमा की पूजा करें और संतान की लंबी उम्र की प्रार्थना करें।
जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व
जीवित्पुत्रिका व्रत को महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र और मंगल कामना के लिए करती हैं। यह व्रत सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है।
जीवित्पुत्रिका व्रत की पौराणिक कथा
कथा के अनुसार, जीमूतवाहन नामक राजा ने एक स्त्री के पुत्र को बचाने के लिए स्वयं को गरुड़ देव के भोजन के रूप में प्रस्तुत कर दिया। उनकी निःस्वार्थ भावना के कारण गरुड़ प्रसन्न हुए और उन्हें वैकुंठ जाने का आशीर्वाद दिया। तभी से माताएं अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए इस उपवास को रखती हैं।
जीवित्पुत्रिका व्रत के लाभ
इस व्रत को करने से संतान की सुरक्षा होती है और उनका जीवन सुखमय होता है। माताएं इस पूजा के बाद अपने बच्चों के सुखद भविष्य की कामना करती हैं।