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तुलसी विवाह का महत्व और विधि: कार्तिक एकादशी पर विशेष

तुलसी विवाह का पर्व कार्तिक मास की एकादशी को मनाया जाता है, जिसमें तुलसी जी का भगवान शालीग्राम से विवाह किया जाता है। इस दिन विशेष पूजा विधि और कथा का महत्व है। जानें कैसे इस दिन को मनाना चाहिए और इसके पीछे की धार्मिक मान्यता क्या है।
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तुलसी विवाह का महत्व और विधि: कार्तिक एकादशी पर विशेष

तुलसी पूजन का उत्सव

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पूरे भारत में तुलसी पूजन का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन जो व्यक्ति तुलसी जी का विवाह भगवान शालीग्राम से करता है, उसे सभी पापों से मुक्ति मिलती है। इस दिन देवोत्थान एकादशी और भीष्म पंचक एकादशी भी मनाई जाती है। दीपावली के बाद आने वाली इस एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। कहा जाता है कि कार्तिक मास में तुलसी के पास दीप जलाने से अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है। तुलसी को लक्ष्मी का निवास माना जाता है, इसलिए इस मास में तुलसी के समक्ष दीप जलाने से विशेष लाभ होता है।


तुलसी विवाह की विधि

इस दिन सुबह स्नान कर व्रत रखना चाहिए और शाम को एक सुंदर मंडप सजाकर विधिपूर्वक गाजे-बाजे के साथ तुलसी जी का विवाह भगवान शालीग्राम से करना चाहिए। तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय हैं। विवाह के बाद तुलसी का पौधा किसी ब्राह्मण को देना चाहिए। तुलसी विवाह का आयोजन इसलिए किया जाता है क्योंकि देवोत्थान एकादशी से देवताओं का दिन प्रारंभ होता है। इस दिन श्रद्धालु तुलसी का भगवान श्री हरि विष्णु के शालीग्राम स्वरूप के साथ प्रतीकात्मक विवाह कर उन्हें बैकुण्ठ धाम के लिए विदा करते हैं।


तुलसी विवाह व्रत कथा

भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा को अपने रूप पर गर्व था। उन्होंने नारदजी से आशीर्वाद मांगा कि अगले जन्म में भी श्रीकृष्ण उनके पति बनें। नारदजी ने कहा कि यदि कोई अपनी प्रिय वस्तु इस जन्म में दान करे, तो वह अगले जन्म में प्राप्त होगी। सत्यभामा ने श्रीकृष्ण को नारदजी को दान में दे दिया। जब नारदजी उन्हें ले जाने लगे, तो अन्य रानियों ने उन्हें रोक लिया। नारदजी ने कहा कि यदि श्रीकृष्ण के बराबर सोना और रत्न दे दो, तो वे उन्हें छोड़ देंगे।
तब तराजू के एक पलड़े में श्रीकृष्ण बैठे और दूसरे पलड़े में रानियां अपने आभूषण चढ़ाने लगीं, लेकिन पलड़ा नहीं हिला। सत्यभामा ने अपने सारे आभूषण चढ़ा दिए, फिर भी पलड़ा नहीं हिला। रुक्मिणी जी ने तुलसी की पत्ती लाकर पलड़े पर रखी, जिससे वजन बराबर हो गया। नारद तुलसी दल लेकर स्वर्ग चले गए। इस प्रकार तुलसी को श्रीकृष्ण का सदा पूज्य माना गया। इसी कारण इस एकादशी को तुलसी जी का व्रत और पूजन किया जाता है।