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तुलसी विवाह: विधि और धार्मिक महत्व

तुलसी विवाह, जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है, एक महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन है। इस दिन माता तुलसी और शलिग्राम का विवाह किया जाता है, जो घर में सुख और समृद्धि लाने का प्रतीक है। इस लेख में, हम तुलसी विवाह की विधि, पूजा के चरण और इसके धार्मिक महत्व के बारे में विस्तार से जानेंगे। जानें कि कैसे इस पवित्र अवसर पर सही तरीके से पूजा की जाए और इसके लाभ क्या हैं।
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तुलसी विवाह: विधि और धार्मिक महत्व

तुलसी विवाह का महत्व

सनातन धर्म के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। इस दिन माता तुलसी और शलिग्राम का विवाह संपन्न होता है, जो घर में सुख और समृद्धि लाने का प्रतीक माना जाता है। इस वर्ष, तुलसी विवाह 2 नवंबर को मनाया जाएगा। इस दिन हर घर में तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है, जिससे परिवार में खुशहाली बनी रहती है। यदि आप भी इस पवित्र अवसर पर तुलसी विवाह करने की योजना बना रहे हैं, तो इसे विधिपूर्वक करना आवश्यक है ताकि किसी भी प्रकार की बाधा न आए।


तुलसी विवाह की पूजा विधि

- तुलसी विवाह के लिए सबसे पहले मन को पवित्र रखना आवश्यक है।


- इसके बाद, घर की सफाई करें।


- फिर, आंगन में आटे और हल्दी से रंगोली बनाएं।


- इसके बाद, तुलसी के पौधे को वहां स्थापित करें।


- एक पटरी पर भगवान विष्णु की तस्वीर और तुलसी माता के साथ शालिग्राम रखें।


- तुलसी माता को चूड़ी, चुनरी, और बिंदी से सजाएं, जैसे एक दुल्हन को सजाया जाता है।


- इसी प्रकार, भगवान शालिग्राम को भी सजाएं।


- अब विवाह की प्रक्रिया आरंभ करें।


तुलसी विवाह की पूरी प्रक्रिया

- जब माता तुलसी और भगवान शालिग्राम सज जाएं, तो उन्हें रोली-चंदन से तिलक करें।


- धूप और घी का दीपक जलाएं।


- तुलसी जी और भगवान शालिग्राम के मंत्रों का पाठ करें।


- हवन करें, जैसा कि विवाह में पंडित द्वारा किया जाता है।


- सभी कार्य पूर्ण होने के बाद, तुलसी माता और शालिग्राम की सात बार परिक्रमा करें।


- विवाह की सभी विधियों के बाद आरती करें और प्रसाद का वितरण करें।


- इस दिन तुलसी विवाह कराने से विवाह से जुड़ी समस्याएं दूर होती हैं।


तुलसी विवाह का धार्मिक महत्व

धार्मिक मान्यता के अनुसार, तुलसी विवाह का दिन अत्यंत शुभ होता है। इस दिन भगवान श्री विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं और सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है। इसी दिन से विवाह के शुभ कार्य आरंभ होते हैं।