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देव दिवाली: महत्व और तिथि की जानकारी

देव दिवाली, जिसे देवताओं की दीपावली के रूप में मनाया जाता है, का विशेष महत्व है। यह पर्व हर साल कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था, और सभी देवता काशी में उतरकर दिवाली मनाते हैं। जानें इस पर्व का शुभ मुहूर्त और दीपदान का महत्व, जो नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त कर सकारात्मकता लाता है।
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देव दिवाली: महत्व और तिथि की जानकारी

देव दिवाली का महत्व

सनातन धर्म में देव दिवाली का त्योहार विशेष महत्व रखता है। दीपावली के उत्सव के बाद, देव दिवाली का पर्व आता है, जिसे देवताओं की दीपावली के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। इस दिन सभी देवता काशी में उतरते हैं और दिवाली का उत्सव मनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा, गंगा में स्नान और दीप दान करने से सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। इसके साथ ही मां लक्ष्मी की विशेष कृपा भी प्राप्त होती है。


देव दिवाली कब मनाई जाती है?

हर साल की तरह, देव दिवाली का पर्व कार्तिक पूर्णिमा की तिथि पर मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा 05 नवंबर को आएगी, और इसी दिन देव दिवाली का उत्सव मनाया जाएगा। इस दिन काशी नगरी को दीपों से सजाया जाता है और देवता काशी में उतरकर दिवाली मनाते हैं।


देव दिवाली का शुभ मुहूर्त

देव दिवाली का मुहूर्त
इस बार देव दिवाली का मुहूर्त कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि 4 नवंबर, मंगलवार को रात 10 बजकर 36 मिनट पर प्रारंभ होगा और अगले दिन 5 नवंबर, बुधवार को शाम 06 बजकर 48 मिनट पर समाप्त होगा। इस बार देव दीपावली का पर्व 5 नवंबर को मनाया जाएगा।


दीपदान का महत्व

दीपदान का महत्व
देव दिवाली पर दीपदान करना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध कर देवताओं को उसके आतंक से मुक्त किया था। इसी खुशी में देवताओं ने दीप जलाए थे। इस दिन से दीपदान करना शुभ माना जाता है। धार्मिक दृष्टिकोण से, दीपदान करने से सभी नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।