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देवशयनी एकादशी: भगवान विष्णु की कृपा पाने का विशेष अवसर

देवशयनी एकादशी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है, जो भगवान विष्णु को समर्पित है। यह व्रत आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है और चातुर्मास की शुरुआत करता है। इस दिन व्रतधारी फलाहार करते हैं और कई खाद्य पदार्थों से परहेज करते हैं। जानें इस व्रत की तिथि, पूजा विधि और व्रत का पारण कैसे करें।
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देवशयनी एकादशी: भगवान विष्णु की कृपा पाने का विशेष अवसर

देवशयनी एकादशी का महत्व

देवशयनी एकादशी को हिंदू धर्म में एक अत्यंत पवित्र व्रत माना जाता है, जो भगवान विष्णु को समर्पित है। यह व्रत आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन से चातुर्मास की शुरुआत होती है, जब भगवान विष्णु चार महीनों के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं। इस अवधि में विवाह, गृह प्रवेश और मुंडन जैसे शुभ कार्यों को वर्जित माना जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को विधिपूर्वक करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।


इस वर्ष देवशयनी एकादशी की तिथि

द्रिक पंचांग के अनुसार, देवशयनी एकादशी इस वर्ष 5 जुलाई को शाम 6:58 बजे से शुरू होकर 6 जुलाई को रात 9:14 बजे तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार, यह व्रत 6 जुलाई 2024, शनिवार को मनाया जाएगा।


व्रत में आहार

देवशयनी एकादशी पर फलाहार करना उचित होता है। व्रतधारी अनाज और दालों का सेवन नहीं करते। इस दिन सेब, केला, अंगूर, आम, पपीता, अनार जैसे फल, दूध, दही, माखन, मट्ठा, पनीर, मखाने, मूंगफली, काजू, किशमिश आदि का सेवन किया जा सकता है। लौकी, तोरई, परवल, खीरा, टमाटर जैसी सब्जियों का भी सेवन किया जा सकता है।


वर्जित खाद्य पदार्थ

इस दिन चावल, गेहूं, बेसन, सूजी, दालें, प्याज, लहसुन, मांसाहार, नशा, साधारण नमक, हल्दी, धनिया पाउडर, लाल मिर्च, हींग आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। केवल सेंधा नमक और हरी मिर्च, अदरक, काली मिर्च जैसे शुद्ध मसालों का उपयोग करें।


पूजन विधि और व्रत संकल्प

व्रत के एक दिन पहले दशमी को सात्विक भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें। व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और भगवान विष्णु के सामने व्रत का संकल्प लें। गंगाजल से स्नान करें, पीले वस्त्र पहनें, फूल, दीप, नैवेद्य अर्पित करें। "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जप करें और व्रत कथा सुनें। रात में जागरण करने से पुण्य और बढ़ता है।


व्रत का पारण

द्वादशी तिथि के सूर्योदय के बाद और हरि वासर समाप्त होने के बाद व्रत का पारण करें। भगवान विष्णु की पूजा करें, ब्राह्मण को भोजन कराएं और फिर तुलसी जल या फल खाकर व्रत तोड़ें।