दोषरहित पंचक: जानें 27 नवंबर से शुरू होने वाले शुभ समय के बारे में
दोषरहित पंचक का महत्व
दोषरहित पंचक का महत्व
हिंदू धर्म में भद्रा काल को अशुभ माना जाता है, इसी तरह पंचक को भी शुभ नहीं माना जाता। हर महीने पंचक के पांच दिन होते हैं, जिनमें कई शुभ और अशुभ कार्य वर्जित होते हैं। पंचक का शुभ या अशुभ होना इस बात पर निर्भर करता है कि यह किस वार से आरंभ हो रहा है।
धार्मिक दृष्टि से, पंचक विवाह जैसे शुभ कार्यों के लिए अनुकूल नहीं माने जाते हैं। नवंबर की 27 तारीख से दोषरहित पंचक का आरंभ होने जा रहा है। आइए जानते हैं कि दोषरहित पंचक क्या है और इसमें किन कार्यों से बचना चाहिए।
पंचक की परिभाषा
पंचक, पांच नक्षत्रों धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती के संयोग से निर्मित एक विशेष समय होता है। यह तब शुरू होता है जब चंद्रमा धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम चरण से रेवती नक्षत्र के अंत तक गोचर करता है, जो कुंभ और मीन राशि में होता है। पंचक हर महीने लगभग पांच दिनों तक चलता है।
पंचक के प्रकार
- सोमवार: राज पंचक (शुभ)
- मंगलवार: अग्नि पंचक (अशुभ)
- बुधवार: दोषरहित पंचक (शुभ)
- गुरुवार: दोषरहित पंचक (शुभ)
- शुक्रवार: चोर पंचक (अशुभ)
- शनिवार: मृत्यु पंचक (सबसे अशुभ)
- रविवार: रोग पंचक (अशुभ)
दोषरहित पंचक की विशेषताएँ
दोषरहित पंचक वे होते हैं, जो बुधवार या गुरुवार से आरंभ होते हैं। इसे शुभ फल देने वाला माना जाता है, क्योंकि यह भगवान विष्णु और बृहस्पति देव की कृपा से प्रभावित होता है।
दोषरहित पंचक के दिनों में सामान्य निषेधों का पालन करने की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन कुछ कार्य जैसे दक्षिण दिशा की यात्रा या मकान की छत डलवाने से बचना चाहिए।
दोषरहित पंचक के नियम
दोषरहित पंचक के दौरान शुभ कार्य किए जा सकते हैं, क्योंकि इन पर कोई अशुभ प्रभाव नहीं होता। इस दौरान दक्षिण दिशा की यात्रा, घर की छत ढलवाना, या लकड़ी का सामान बनवाना वर्जित होते हैं। यदि किसी आवश्यक कार्य की आवश्यकता हो, तो उपाय के लिए किसी पंडित से सलाह लेना उचित है।
