धनतेरस: स्वास्थ्य, समृद्धि और सद्गुण का पर्व
धनतेरस का पर्व केवल सोने-चांदी खरीदने का दिन नहीं है, बल्कि यह स्वास्थ्य, समृद्धि और सद्गुण का प्रतीक है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि असली संपत्ति हमारा स्वास्थ्य है और धन का सही उपयोग ही उसे ‘लक्ष्मी’ बनाता है। जानें इस पर्व का महत्व, इसके ऐतिहासिक संदर्भ और समाज में धन के उपयोग के बारे में।
Oct 18, 2025, 12:04 IST
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धनतेरस का महत्व
धनतेरस का त्योहार पंच दिवसीय दीपोत्सव की शुरुआत का प्रतीक है। यह केवल सोने-चांदी या बर्तन खरीदने का दिन नहीं है, बल्कि यह धन के प्रति हमारी सोच को संतुलित करने का अवसर भी है। भारतीय संस्कृति में धन को देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है, और यह पूजा केवल भौतिक संपत्ति के लिए नहीं, बल्कि धन के नैतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक उपयोग के लिए भी है। ऋषि-मुनियों ने धन को केवल मुद्रा नहीं, बल्कि एक ऊर्जा के रूप में देखा है। उपनिषदों में कहा गया है कि “धनं मूलं सर्वेषां साधनानाम्”, अर्थात धन सभी साधनों का मूल है, लेकिन वही धन शुभ है जो धर्म-संयम से अर्जित किया गया हो और लोककल्याण में लगाया जाए। धनतेरस हमें यह सिखाता है कि धन का सही उपयोग ही उसे ‘लक्ष्मी’ बनाता है, अन्यथा वह ‘अलक्ष्मी’ का कारण बन सकता है। धनतेरस कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है, जिसे धनत्रयोदशी भी कहा जाता है। इस दिन बर्तन, सोना और चांदी खरीदना शुभ माना जाता है। भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद का जनक माना जाता है, इसलिए यह दिन उनके प्रति समर्पित है।
स्वास्थ्य का महत्व
भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य को सबसे बड़ा धन माना गया है। भगवान धन्वंतरि, जिन्हें भगवान विष्णु का अंश माना जाता है, ने मानवता को चिकित्सा विज्ञान का ज्ञान दिया। इसी कारण धनतेरस के दिन वैद्य समाज भगवान धन्वंतरि की पूजा करता है। धनतेरस का ऐतिहासिक महत्व समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ा है, जब भगवान धन्वंतरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे। इस दिन भगवान धन्वंतरि और धन एवं समृद्धि के देवता भगवान कुबेर की पूजा की जाती है। भारत सरकार ने धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। इस दिन यम दीपक जलाने की परंपरा भी है, जिसे दीपदान कहा जाता है। एक मान्यता के अनुसार, यमराज से रक्षा के लिए इस दिन यमदीपदान किया जाता है।
धन का उपयोग और समाज
प्राचीन भारत में धन का वितरण और उपयोग धर्म और नीति से जुड़ा था। व्यापारी लाभ में लोक-लाभ देखते थे, और राजा अपने धन का उपयोग जनकल्याण में करते थे। लेकिन आधुनिक युग में धन का स्वरूप विकृत हो गया है। धन अब साधन से लक्ष्य बन गया है, जिसके परिणामस्वरूप समाज में अमीरी-गरीबी की खाई बढ़ी है। धनतेरस का पर्व इस विडंबना पर आत्ममंथन का अवसर है। यह हमें याद दिलाता है कि धन को केवल अपनी तिजोरी का नहीं, बल्कि समाज की समृद्धि का माध्यम बनाना चाहिए। लोकमान्यता के अनुसार, इस दिन धन खरीदने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है।
धनतेरस का सच्चा संदेश
महात्मा गांधी ने कहा था, “पैसा अपने आप में बुरा नहीं है, परंतु जब वह मनुष्य का स्वामी बन जाता है, तब वह विनाश का कारण बनता है।” धनतेरस का सच्चा संदेश यही है कि धन का स्वामी बनो, उसका दास नहीं। धन के प्रति सकारात्मक दृष्टि का अर्थ है उसे साधना, सेवा और संस्कार से जोड़ना। आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है कि धन और धर्म का संवाद पुनः स्थापित हो। धनतेरस हमें सिखाता है कि धन का अर्जन सत्य मार्ग से हो और उसका उपभोग सेवा मार्ग पर हो।
धनतेरस का पर्व
धनतेरस केवल सोना-चांदी खरीदने का दिन नहीं है, बल्कि यह धन की शुद्धता और सदुपयोग का पर्व है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि असली संपत्ति हमारा स्वास्थ्य है। इसलिए इस दिन की पूजा न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ी है, बल्कि जीवन के संतुलन और सुख-शांति का भी प्रतीक है। धनतेरस हमें प्रेरित करता है कि हम धन को ‘दिव्यता’ में रूपांतरित करें। यह पर्व हमें पुकारता है कि हम धन के प्रति अपनी दृष्टि बदलें और उसे लोकमंगल में प्रवाहित करें।