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नवपत्रिका पूजा: महत्व और विधि की जानकारी

नवपत्रिका पूजा, देवी काली को समर्पित एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो शारदीय नवरात्र के सातवें दिन मनाया जाता है। इस दिन भक्त गणेश और माता दुर्गा की पूजा करते हैं, और विशेष पौधों की पत्तियों का उपयोग किया जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह परिवार में सुख और समृद्धि लाने का माध्यम भी है। जानें इस पूजा की विधि और महत्व के बारे में विस्तार से।
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नवपत्रिका पूजा: महत्व और विधि की जानकारी

देवी काली को समर्पित विशेष दिन


आज शारदीय नवरात्र का सातवां दिन है, जो देवी मां काली को समर्पित है। इस दिन भक्तिभाव से देवी की पूजा की जाती है और विशेष कार्यों में सफलता के लिए व्रत रखा जाता है। सप्तमी तिथि पर नवपत्रिका पूजा का पर्व मनाया जाता है, जो विशेष रूप से बंगाल, झारखंड, ओडिशा, त्रिपुरा, मणिपुर और असम में धूमधाम से मनाया जाता है। इसे नाबापत्रिका पूजा और कलाबाऊ पूजा के नाम से भी जाना जाता है।


नवपत्रिका पूजा की प्रक्रिया

इस दिन भक्त गणेश और माता दुर्गा की पूजा करते हैं और घर को पवित्र करके मां का स्वागत करते हैं। नवपत्रिका पूजा में केला, कच्ची हल्दी, अनार, अशोक, मनका, धान, बिल्व और जौ के पौधों की पत्तियों को एकत्रित कर पूजा की जाती है। ये नौ पौधे देवी मां के नौ स्वरूपों का प्रतीक माने जाते हैं।


पौधों को स्नान कराकर सजाया जाता है और फूल, दीप एवं अक्षत से पूजित किया जाता है। यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह घर-परिवार में सुख, शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा लाने का माध्यम भी है। इस वर्ष नवपत्रिका पूजा का पर्व 29 सितंबर को मनाया जाएगा।


नवपत्रिका पूजा में पौधों का महत्व


  • केले का पत्र: शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक।

  • मनका पत्र: शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक।

  • हल्दी पत्र: शुभता, समृद्धि और स्वास्थ्य का प्रतीक।

  • जयंती पत्र: शुभता और कामना पूरी होने का प्रतीक।

  • बेल पत्र: शांति और शक्ति का प्रतीक।

  • अनार पत्र: ज्ञान, प्रेम और सौंदर्य का प्रतीक।

  • अशोक पत्र: शुद्धता, सत्य और विजय का प्रतीक।

  • धान पत्र: समृद्धि और पोषण का प्रतीक।

  • जौ पत्र: आशा, उल्लास, सौंदर्य और ऊर्जा का प्रतीक।


पूजा का आयोजन

बंगाल, झारखंड, ओडिशा, त्रिपुरा, मणिपुर और असम में नवपत्रिका पूजा बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है। घरों और मंदिरों को सजाया जाता है, भजन-कीर्तन और आरती के माध्यम से माता दुर्गा का स्वागत किया जाता है।


स्थानीय रीति-रिवाजों के अनुसार पूजा का आयोजन होता है, जिसमें नवपत्रिका को स्नान कराकर सजाया जाता है और उन्हें दीप, फूल और अक्षत अर्पित किए जाते हैं। यह पर्व न केवल भक्ति का अवसर है, बल्कि समाज और परिवार में उल्लास, एकता और सकारात्मक ऊर्जा का संदेश भी लेकर आता है।