नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा का महत्व

मां चंद्रघंटा की आराधना
शारदीय नवरात्रि का पर्व मां दुर्गा की पूजा और शक्ति की आराधना का सबसे महत्वपूर्ण अवसर माना जाता है। नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है, जो शांति, सौभाग्य और कल्याण का प्रतीक मानी जाती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब असुरों का अत्याचार बढ़ा, तब मां भगवती ने चंद्रघंटा का रूप धारण कर उनका संहार किया।
मां चंद्रघंटा के सिर पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, जिसके कारण उन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। उनका शरीर स्वर्ण के समान तेजस्वी है। उनकी दस भुजाओं में विभिन्न अस्त्र-शस्त्र हैं और उनका वाहन सिंह है। मां का यह स्वरूप शक्ति, साहस और पराक्रम का प्रतीक है।
श्रद्धालुओं का मानना है कि मां चंद्रघंटा की आराधना से भय, संकट और बाधाओं का नाश होता है, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
भारत में कई स्थानों पर मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है, लेकिन कुछ मंदिरों का विशेष महत्व है।
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में चौक क्षेत्र में स्थित मां चंद्रघंटा का प्राचीन मंदिर भक्तों के बीच विशेष आस्था का केंद्र है। इसे मां क्षेमा माई का मंदिर भी कहा जाता है।
पुराणों और जनश्रुतियों में इस मंदिर का उल्लेख मिलता है। यहां मां दुर्गा के सभी नौ स्वरूपों के दर्शन एक ही स्थान पर होते हैं। नवरात्रि के दौरान यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है और विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
वाराणसी में चंद्रघंटा देवी मंदिर भी भक्तों के लिए एक पवित्र स्थल है। नवरात्रि के दौरान यहां श्रद्धालुओं की लंबी कतारें देखने को मिलती हैं। यहां मां को दूध से बनी विशेष मिठाई का भोग अर्पित किया जाता है, जो प्रतिदिन प्रातः तैयार किया जाता है और भक्तों को वितरित किया जाता है।
दिल्ली के करोल बाग में स्थित झंडेवालान मंदिर भी मां चंद्रघंटा की आराधना का प्रमुख केंद्र है। यहां देवी झंडेवाली की भव्य मूर्ति के साथ मां चंद्रघंटा की प्रतिमा भी स्थापित है।
नवरात्रि के समय यह मंदिर विशेष रूप से फूलों और रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया जाता है। खासकर तीसरे दिन, मां चंद्रघंटा के दर्शन के लिए यहां हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं।