नागपंचमी: सांपों की पूजा का महत्व और विधि
नागपंचमी का पर्व श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व नागों की पूजा का प्रतीक है, जो हिन्दू धर्म में भूमि के रक्षक माने जाते हैं। नागपंचमी न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह पर्यावरण और जीवों के संरक्षण का संदेश भी देता है। इस लेख में नागपंचमी के महत्व, पूजा विधि, और इससे जुड़ी प्रसिद्ध कथाएँ प्रस्तुत की गई हैं। जानें इस विशेष दिन पर क्या करना चाहिए और क्या नहीं।
Jul 28, 2025, 16:16 IST
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नागपंचमी का पर्व
नागपंचमी का उत्सव श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से नागों (साँपों) की पूजा के लिए समर्पित है, जिन्हें हिन्दू धर्म में भूमि के रक्षक और कुंडलिनी ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। नागपंचमी केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह पर्यावरण और जीवों के संरक्षण की प्राचीन भारतीय चेतना का भी प्रतीक है। यह पर्व हमें सिखाता है कि प्रकृति के हर जीव के प्रति संतुलन और सम्मान का व्यवहार आवश्यक है।
नागपंचमी का महत्व
प्रकृति पूजन: नागों को पृथ्वी के नीचे रहने वाले जीवों के रूप में देखा जाता है, जो भूमि की उर्वरता और जल स्रोतों की रक्षा करते हैं।
धार्मिक मान्यता: हिन्दू धर्मग्रंथों में शेषनाग, वासुकी, तक्षक, कर्कोटक, पद्मनाभ जैसे प्रमुख नागों का उल्लेख मिलता है।
नाग और देवता: भगवान शिव के गले में वासुकी नाग सुशोभित हैं और शेषनाग भगवान विष्णु का शैय्या रूप हैं।
कथा अनुसार: महाभारत में जनमेजय द्वारा नाग यज्ञ कराने की कथा प्रसिद्ध है, जिसे आस्तिक मुनि ने रोका था। उसी दिन नागों की पूजा की परंपरा प्रारंभ हुई।
नागपंचमी पूजन सामग्री
पूजन सामग्री: दूध, दही, शहद, काले तिल, कुशा, अक्षत, रोली, चंदन, पुष्प, दूर्वा, नाग देवता की मूर्ति या चित्र (या दीवार पर चित्र बनाना), पंचामृत, दीपक, धूप, कपूर, सुपारी, नारियल, लड्डू या गुड़।
नागपंचमी पूजन विधि
प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें और पूजन स्थल को गंगा जल से शुद्ध करें।
नाग देवता की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। दीवार पर नाग का चित्र भी बनाया जा सकता है।
उन्हें पंचामृत से स्नान कराएँ, दूध अर्पित करें।
चंदन, रोली, अक्षत, पुष्प, दूर्वा आदि से पूजन करें।
काले तिल और शुद्ध घी से दीपक जलाकर आरती करें।
नाग मंत्रों का जाप
"ॐ कुरुकुल्ये हुं फट् स्वाहा",
"ॐ नमो भगवते वासुकी नागराजाय नमः"
नाग देवता को लड्डू, गुड़ या दूध से बनी मिठाइयाँ अर्पित करें।
कथा सुनें या पढ़ें।
ब्राह्मणों को भोजन कराएँ और दान-दक्षिणा दें।
नागपंचमी के दिन क्या करें और क्या न करें?
करें:
नाग देवता की पूजा करें
दूध और जल का अर्पण करें
व्रत रख सकते हैं (विशेषतः महिलाएँ)
न करें:
जमीन में खुदाई या हल चलाना
लोहे के औज़ारों का प्रयोग
झूठ बोलना, वाद-विवाद
सांपों को मारने से बचें
नागपंचमी से जुड़ी प्रसिद्ध कथाएँ
महाभारत की कथा: जनमेजय ने पिता परीक्षित की मृत्यु के बदले नागों का यज्ञ कराया था। आस्तिक मुनि ने नागों की रक्षा के लिए पूजा का महत्व बताया।
शिव-वासुकी कथा: भगवान शिव ने वासुकी नाग को अपने गले में स्थान दिया, जो समर्पण का प्रतीक है।
नागपंचमी कथा
1. किसी राज्य में एक किसान रहता था। किसान के दो पुत्र व एक पुत्री थी। एक दिन हल चलाते समय सांप के तीन बच्चे कुचलकर मर गये। नागिन पहले तो विलाप करती रही फिर संतान के हत्यारे से बदला लेने के लिए चल दी। रात्रि में नागिन ने किसान, उसकी पत्नी व दोनों लड़कों को डस लिया। अगले दिन नागिन किसान की पुत्री को डसने के लिए पहुंची तो किसान की पुत्री ने नागिन के सामने दूध से भरा कटोरा रखा और हाथ जोड़कर क्षमा मांगने लगी। नागिन ने प्रसन्न होकर उसके माता−पिता व दोनों भाइयों को जीवित कर दिया। उस दिन श्रावण शुक्ला पंचमी थी। तब से नागों के प्रकोप से बचने के लिए इस दिन नागों की पूजा की जाती है।
2. एक ब्राह्मण की सात पुत्रवधुएं थीं। सावन मास आते ही छह बहुएं तो भाई के साथ मायके चली गईं लेकिन सातवीं बहू का कोई भाई नहीं था सो वह अपने ससुराल में ही रही। वह भाई के न होने से काफी दुखी थी। उसने एक दिन पृथ्वी को धारण करने वाले शेषनाग को भाई के रूप में याद किया। शेषनाग ने जब वह करुणामयी आवाज सुनी तो वह द्रवित हो गये और एक बूढ़े ब्राह्मण का रूप धर कर आए और उसे लेकर चल दिये। जब उन्होंने कुछ रास्ता तय कर लिया तो वह अपने असली रूप में आ गये और अपनी मुंहबोली बहन को अपने फन पर बिठाकर अपने लोक को चले गये।
उनकी मुंहबोली बहन नागलोक में आनंद के साथ समय व्यतीत करने लगी। शेषनाग के कुल में बहुत से नाग बच्चों ने जन्म लिया। उन नाग बच्चों को सब जगह विचरण करते देख शेष−नागरानी ने अपने पति की मुंहबोली बहन को एक दीपक प्रदान किया और बताया कि यह चमत्कारी दीपक है इसकी रोशनी में घोर अंधेरे में भी सब कुछ देखा जा सकता है। बहन ने दीपक रख लिया लेकिन एक दिन असावधानीवश उसके हाथ से वह दीपक नीचे गिर गया जोकि वहां विचर रहे कुछ नाग बच्चों पर गिर गया और उनकी पूंछ थोड़ी सी कट गई। इस घटना के बाद बहन अपने ससुराल लौट आई।
जब अगला सावन आया और बाकी छह बहुएं अपने−अपने मायके से आए बुलावे के चलते वहां चली गईं और सातवीं बहू फिर से अपने मुंहबोले भाई की राह ताकने लगी। उसने दीवार पर नाग देवता की तस्वीर उकेरी और उनकी पूजा करने लगी। दूसरी ओर जिन नाग बालकों की पूंछ कटी थी वह उससे बदला लेने के लिए आ रहे थे। लेकिन जब वह उसके घर पहुंचे और उसे अपनी पूजा करते हुए पाया तो उनका सारा क्रोध शांत हो गया। उन्होंने अपने पिता की मुंहबोली बहन के हाथों से प्रसाद ग्रहण किया और उसे आशीर्वाद दिया कि उसे नागकुल से अब कोई डर नहीं रहेगा। नाग बालकों ने अपनी बुआ को मणियों की एक माला भी दी और कहा कि आज सावन की पंचमी के दिन जो भी महिला हमें भाई के रूप में पूजेगी हम उनकी रक्षा करेंगे।