निर्जला एकादशी: 24 एकादशियों का फल एक दिन में

निर्जला एकादशी का महत्व
निर्जला एकादशी का व्रत करने से 24 एकादशियों का फल प्राप्त होता है: इस व्रत को करने से बारह माह की एकादशियों का पुण्य मिलता है। माधव धर्मशास्त्र के अनुसार, गृहस्थों के लिए यह व्रत 6 जून को और वैष्णो के लिए 7 जून को करना सर्वोत्तम माना गया है। बगीची वाले मंदिर के पुजारी पंडित महेश शर्मा के अनुसार, निर्जला एकादशी हिंदू धर्म में एक पवित्र और पुण्यदायिनी तिथि है।
Nirjala Ekadashi 2025: इसके लाभ क्या हैं?
यह व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इसे सभी एकादशियों में सबसे कठिन माना जाता है, क्योंकि इस दिन उपवासी को जल का सेवन भी नहीं करना होता। गर्मी के मौसम में इस उपवास को रखना एक कठिन तपस्या है, जिससे इसका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व और बढ़ जाता है।
‘निर्जला’ का अर्थ है ‘बिना जल के’। अन्य एकादशी व्रतों में फल और जल ग्रहण की अनुमति होती है, लेकिन इस एकादशी में उपवासी को सूर्योदय से अगले दिन सूर्योदय तक बिना अन्न, जल और फल के उपवास करना होता है।
पंडित महेश शर्मा ने बताया कि वर्ष में 24 एकादशियां होती हैं (अधिकमास में यह संख्या 26 हो जाती है)। मान्यता है कि जो व्यक्ति सभी एकादशियों का व्रत नहीं कर पाता, वह केवल निर्जला एकादशी का व्रत करके सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त कर सकता है।
भीम एकादशी का नामकरण
इसे ‘भीम एकादशी’ भी कहा जाता है, क्योंकि महाभारत में भीमसेन भोजन के प्रेमी थे और उपवास करना उनके लिए कठिन था। जब भीमसेन ने श्रीव्यास जी से उपाय पूछा, तो उन्होंने निर्जला एकादशी का व्रत रखने का सुझाव दिया। इस प्रकार एक दिन का व्रत करके भीमसेन ने सभी एकादशियों का फल अर्जित किया। इस बार 6 जून, शुक्रवार को निर्जला एकादशी पर व्यतिपत नाम का योग बन रहा है। वराह पुराण के अनुसार, इस योग में मंत्र जप, तप, और ध्यान करने से कई गुना फल की प्राप्ति होती है।
व्रती को इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए और भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। पूजा में तुलसी दल, पीले फूल, पंचामृत, धूप-दीप और भोग आदि अर्पित किए जाते हैं। व्रती को पूरे दिन भगवान विष्णु का नाम जपते हुए, ध्यान और भजन-कीर्तन में समय बिताना चाहिए।
निर्जला एकादशी के नियम
जल ग्रहण करना भी वर्जित होता है, इसलिए व्रतधारी को पूरे दिन संयम, शांति और श्रद्धा से समय बिताना चाहिए। अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण किया जाता है, जिसमें ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान-दक्षिणा दी जाती है।
शास्त्रों में कहा गया है कि निर्जला एकादशी का व्रत रखने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। जो व्यक्ति श्रद्धा से यह व्रत करता है, उसे मृत्यु के बाद यमलोक नहीं जाना पड़ता, बल्कि वह सीधे विष्णु लोक को प्राप्त करता है। इस व्रत के पुण्य से जीवन में सुख, समृद्धि, मानसिक शांति, स्वास्थ्य लाभ और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
निर्जला एकादशी के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है। गर्मी के मौसम में जलदान, पंखा, वस्त्र, छाता, फल, शर्बत आदि का दान करना अत्यंत पुण्यदायक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन किया गया छोटा सा भी दान करोड़ों गुना फल देता है।