निर्जला एकादशी: महत्व, पूजा विधि और दान के नियम
निर्जला एकादशी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है। इस दिन भक्त 24 घंटे तक अन्न और जल का त्याग करते हैं, जिससे उन्हें साल की सभी एकादशियों का फल मिलता है। इस लेख में, हम निर्जला एकादशी के महत्व, पूजा विधि, पारण का समय और दान के नियमों के बारे में विस्तार से जानेंगे। जानें कैसे इस दिन विशेष पूजा करके आप अपने जीवन में सुख और शांति प्राप्त कर सकते हैं।
Jun 5, 2025, 12:01 IST
| 
निर्जला एकादशी का महत्व
हिंदू धर्म में निर्जला एकादशी का विशेष स्थान है। यह दिन भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है और इसे सबसे पवित्र दिनों में से एक माना जाता है। इस दिन भक्त प्रार्थना करते हैं और निर्जला व्रत रखते हैं। आइए जानते हैं इस व्रत का महत्व और पूजा की विधि।
निर्जला एकादशी के बारे में जानकारी
एकादशी व्रत का विशेष महत्व है, जिसमें निर्जला एकादशी सबसे कठिन मानी जाती है। इस दिन 24 घंटे तक अन्न और जल का त्याग किया जाता है, जिससे साल की 24 एकादशियों का फल प्राप्त होता है। इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है, क्योंकि इसे सबसे पहले भीम ने रखा था। इस वर्ष, निर्जला एकादशी 6 जून को मनाई जाएगी। एकादशी व्रत के एक दिन पहले चावल का सेवन नहीं करना चाहिए। पंचांग के अनुसार, यह व्रत ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को होता है।
पारण का समय
निर्जला एकादशी का पारण द्वादशी तिथि पर किया जाता है, जो 7 जून को होगा। पारण का शुभ मुहूर्त दोपहर 01:44 बजे से लेकर शाम 04:31 बजे तक है।
पारण की विधि
निर्जला एकादशी के बाद द्वादशी तिथि पर सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और सूर्य देव को अर्घ्य दें। मंदिर की सफाई के बाद पूजा आरंभ करें। देसी घी का दीपक जलाएं और भगवान विष्णु की आरती करें। मंत्रों का जप करें और विष्णु चालीसा का पाठ करें। भगवान को सात्विक भोजन का भोग लगाएं और सुख-शांति की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करें। अंत में प्रसाद का वितरण करें।
विशेष ध्यान देने योग्य बातें
पंडितों के अनुसार, निर्जला एकादशी व्रत में पारण के भोग में सात्विक भोजन का समावेश होना चाहिए। लहसुन और प्याज का उपयोग न करें।
दान का महत्व
दान न करने पर निर्जला एकादशी व्रत अधूरा माना जाता है। द्वादशी तिथि पर श्रद्धा अनुसार मंदिर या गरीबों में अन्न, धन और कपड़े का दान करें। दान करने से जीवन में किसी चीज की कमी नहीं होती।
निर्जला एकादशी का शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ- 6 जून 2025 - 02:15 पूर्वाह्न
एकादशी तिथि समाप्त- 7 जून 2025 - 04:47 पूर्वाह्न
पारण का समय- 7 जून 2025 - दोपहर 01:43 बजे से शाम 04:30 बजे तक
एकादशी तिथि समाप्त- 7 जून 2025 - 04:47 पूर्वाह्न
पारण का समय- 7 जून 2025 - दोपहर 01:43 बजे से शाम 04:30 बजे तक
निर्जला एकादशी के नियम
इस व्रत में रात को बिस्तर पर सोना मना है, जमीन पर सोना शुभ माना जाता है। कांस के बर्तन में खाना नहीं खाना चाहिए और झाड़ू का उपयोग नहीं करना चाहिए। इस दिन अपशब्द न कहें और बड़े बुजुर्गों का सम्मान करें।
निर्जला एकादशी का धार्मिक महत्व
धर्मग्रंथों के अनुसार, निर्जला एकादशी का बड़ा धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। इसे ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी भी कहा जाता है। यह व्रत बिना भोजन या पानी के रखा जाता है। द्वादशी तिथि पर भक्तों को केवल पानी पीने की अनुमति होती है।
भीम का उपवास
पांडवों में से भीम ने सभी एकादशियों पर उपवास करने का निर्णय लिया था, लेकिन भूख को नियंत्रित नहीं कर सके। ऋषि व्यास ने उन्हें निर्जला एकादशी व्रत रखने का सुझाव दिया, जिससे सभी 24 एकादशियों का लाभ मिल सके।
निर्जला एकादशी के लाभ
सफाई के बाद भक्त सुबह पूजा आरंभ करते हैं। भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें और उन्हें तुलसी पत्र चढ़ाएं। पूरे दिन श्री कृष्ण महामंत्र का जाप करें। द्वादशी तिथि को पारण के दौरान अपना व्रत खोलें।
उपाय और लाभ
निर्जला एकादशी के दिन जरूरतमंदों को दान करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। एक चकोर भोजपत्र पर केसर में गुलाबजल मिलाकर ओम नमो नारायणाय मंत्र लिखें और इसे अपने पास रखें। इससे धन और समृद्धि में वृद्धि होगी।