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निर्जला एकादशी: व्रत के नियम और महत्व

निर्जला एकादशी का व्रत 6 जून को मनाया जाएगा, जिसमें भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन अन्न और जल का त्याग करना होता है, और कुछ खास नियमों का पालन करना आवश्यक है। जानें इस व्रत के नियम, दान का महत्व और कैसे इस दिन की पूजा से पुण्य की प्राप्ति होती है।
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निर्जला एकादशी: व्रत के नियम और महत्व

निर्जला एकादशी का महत्व

नई दिल्ली। निर्जला एकादशी का विशेष महत्व है, जिसमें भगवान विष्णु की पूजा विधिपूर्वक की जाती है। इस दिन व्रत करने से भक्तों को भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह एकादशी ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष में वृषभ और मिथुन संक्रांति के बीच आती है।


व्रत के पालन के नियम

इस वर्ष निर्जला एकादशी का व्रत 6 जून, शुक्रवार को रखा जाएगा। यह व्रत मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें अन्न और जल का त्याग करना होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह व्रत 6 जून को रात 2:15 बजे शुरू होगा और 7 जून को सुबह 4:47 बजे समाप्त होगा। इस दिन कुछ विशेष नियमों का पालन करना आवश्यक है ताकि व्रत खंडित न हो।


कलश दान का महत्व

निर्जला एकादशी के व्रत में दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है, क्योंकि इससे पुण्य की प्राप्ति होती है। जल कलश दान करने से पूरे साल की एकादशियों का फल प्राप्त होता है। इस दिन व्रत करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। भगवान विष्णु को समर्पित इस दिन की पूजा के कुछ विशेष नियम होते हैं, जिनका पालन करना अनिवार्य है।


अनाज का त्याग

जैसा कि नाम से स्पष्ट है, निर्जला व्रत में पानी और खाने का त्याग करना होता है। यह व्रत सभी एकादशियों में सबसे कठिन माना जाता है। यदि व्रत के नियमों का पालन नहीं किया गया, तो यह खंडित हो सकता है। ज्योतिष के अनुसार, इस दिन अनाज का त्याग करना आवश्यक है।


दिन में सोने से बचें

इस व्रत में फल खाना भी मान्य नहीं है। भक्तों को भूखे और प्यासे रहकर मन को शांत करने का प्रयास करना चाहिए। बुरे विचारों से दूर रहना चाहिए और किसी को तीखा बोलने से बचना चाहिए। दिनभर कम बोलने की कोशिश करें, और यदि संभव हो तो मौन व्रत रखें। दिन में सोने से बचना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।


गरीबों को दान करें

निर्जला व्रत में भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए और भगवान का नाम जपते रहना चाहिए। इससे मन शुद्ध और शांत रहता है। इस दिन रात में जागरण करना भी शुभ माना जाता है। द्वादशी के दिन सूर्योदय के बाद ही व्रत का पारण करना चाहिए, और पारण से पहले गरीबों को दान-दक्षिणा देना न भूलें।