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पितृ पक्ष में तुलसी पूजा: जानें इसके महत्व और विधि

पितृ पक्ष के दौरान तुलसी पूजा का विशेष महत्व है। यह समय पूर्वजों की आत्मा की शांति और आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर है। जानिए कैसे करें तुलसी की पूजा और इसके लाभ। इस लेख में हम तुलसी पूजा की विधि, मंत्र और इसके महत्व के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
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पितृ पक्ष में तुलसी पूजा: जानें इसके महत्व और विधि

तुलसी पूजन का महत्व


तुलसी पूजन से मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु होते हैं प्रसन्न
पितृ पक्ष का आरंभ हो चुका है। हिंदू धर्म में इसे पूर्वजों की आत्मा की शांति और आशीर्वाद प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण अवसर माना जाता है। यह हर साल भाद्रपद की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन माह की अमावस्या तक चलता है। इस वर्ष, पितृ पक्ष 7 सितंबर से 21 सितंबर तक मनाया जाएगा। आइए जानते हैं कि क्या इस दौरान तुलसी की पूजा की जा सकती है।


पितरों को मोक्ष की प्राप्ति

पितृ पक्ष में तुलसी की पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यह मान्यता है कि तुलसी की पूजा से मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं, जिससे पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यदि आप इस दौरान नियमित रूप से (रविवार और एकादशी को छोड़कर) तुलसी में जल अर्पित करते हैं, तो इससे आपको पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होगा।


पूजा विधि

पितृ पक्ष में प्रतिदिन तुलसी की पूजा करें और शाम को तुलसी के समक्ष घी का दीपक जलाएं। तुलसी की परिक्रमा करें और अपने पितरों को स्मरण करते हुए सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें। आप दूध, जल या गंगाजल में तुलसी के पत्ते डालकर भी पितरों को अर्पित कर सकते हैं। इससे पितृ तृप्त होते हैं और साधक को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।


तुलसी के मंत्र


  • ॐ सुभद्राय नम:


जल अर्पित करने का मंत्र


  • महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते


तुलसी स्तुति मंत्र


  • देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरै:
    नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।

  • तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
    धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।

  • लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत।
    तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।


तुलसी नामाष्टक मंत्र


  • वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
    पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।

  • एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
    य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।