पितृ पक्ष: श्राद्ध का महत्व और विधि
पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध का आयोजन दिवंगत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है। इस लेख में जानें श्राद्ध का महत्व, विधि और इसे करने के सही तरीके। पितरों को तृप्त करने के लिए आवश्यक जानकारी और पंच तत्वों का महत्व भी समझें।
Sep 9, 2025, 18:13 IST
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पितरों का ऋण चुकाना
पितरों का ऋण चुकाना जीवन में संभव नहीं है, लेकिन श्राद्ध की परंपरा के माध्यम से हम उनके प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। श्राद्धकर्म का आयोजन षष्ठी तिथि को किया जाता है, जिसमें दिवंगत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए विशेष पूजा की जाती है। मान्यता है कि यदि पितर नाराज हो जाएं, तो व्यक्ति के जीवन में समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इसलिए, पितरों को तृप्त करना और उनकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध करना आवश्यक है। ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास के अनुसार, श्राद्ध के माध्यम से भोजन अर्पित किया जाता है और पिंड दान व तर्पण के जरिए उनकी आत्मा की शांति की कामना की जाती है। श्राद्ध उस तिथि पर किया जाता है, जिस दिन पूर्वज का निधन हुआ हो। जिनकी तिथि ज्ञात नहीं है, उनका श्राद्ध अमावस्या को किया जाता है।
श्राद्ध के अवसर
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार, पितृगणों के श्राद्ध कर्म के लिए वर्ष में 96 अवसर होते हैं। प्रत्येक महीने की 12 अमावस्या पर भी श्राद्ध किया जा सकता है। श्राद्ध कर्म तीन पीढ़ियों के पूर्वजों के लिए किया जाता है, और इसे पुत्र, पोता, भतीजा या भांजा कर सकते हैं। यदि घर में पुरुष सदस्य नहीं हैं, तो महिलाएं भी श्राद्ध कर सकती हैं। पितृ पक्ष में हर तिथि का अपना महत्व है। पूर्णिमा से पितृ पक्ष की शुरुआत होती है।
श्राद्ध विधि
श्राद्ध करने की विधि का पालन करना आवश्यक है। यदि विधि से श्राद्ध नहीं किया गया, तो यह निष्फल माना जाता है। योग्य ब्राह्मण के माध्यम से श्राद्ध कर्म करवाना चाहिए। श्राद्ध के दिन ब्राह्मणों को भोज कराना और जरूरतमंदों की सहायता करना भी पुण्य का कार्य है। श्राद्ध का समय दोपहर में उपयुक्त होता है।
पंच तत्वों का महत्व
श्राद्ध के दौरान गाय, कुत्ता, कौआ, चींटी और देवताओं के लिए भोजन का एक हिस्सा निकाला जाता है। ये पांच जीव पंच तत्वों का प्रतीक हैं। गाय में सभी तत्व पाए जाते हैं, इसलिए पितृ पक्ष में गाय की सेवा विशेष फलदायी होती है।
श्राद्ध के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें
श्राद्ध के दिनों में कुछ विशेष कार्य करना चाहिए। श्राद्ध के लिए केवल ज्येष्ठ या कनिष्ठ पुत्र, नाती, भतीजा या भांजा ही पात्र होते हैं। श्राद्ध का समय हमेशा दोपहर के बाद होना चाहिए। लहसुन और प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए।
एकादशी का श्राद्ध
एकादशी का श्राद्ध सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। यह व्यक्ति को समस्त पापों से मुक्त करता है और ऐश्वर्य की प्राप्ति कराता है।