प्रदोष व्रत: जानें पूजा विधि और मुहूर्त
प्रदोष व्रत का महत्व और पूजा विधि जानें। यह व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है, जिसमें शिव जी की पूजा की जाती है। इस लेख में प्रदोष व्रत के नियम, पूजा का मुहूर्त और विधि के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। जानें कैसे इस व्रत के माध्यम से शिव जी की कृपा प्राप्त की जा सकती है।
Sep 5, 2025, 06:45 IST
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प्रदोष व्रत के नियम और पूजा विधि
प्रदोष व्रत का महत्व
प्रदोष व्रत का पुराणों में विशेष महत्व है। यह माना जाता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति के पाप समाप्त हो जाते हैं। यह व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है, जिससे हर महीने दो बार इसे किया जा सकता है। इस व्रत का उद्देश्य भगवान शिव की कृपा प्राप्त करना है, और इसे स्त्री-पुरुष दोनों द्वारा किया जा सकता है।
प्रदोष व्रत की पूजा का मुहूर्त
भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 5 सितंबर को सुबह 4:08 बजे से शुरू होगी और 6 सितंबर को सुबह 3:12 बजे समाप्त होगी। इस दिन प्रदोष व्रत शुक्रवार को मनाया जाएगा, जिसे शुक्र प्रदोष व्रत भी कहा जाता है। पूजा का मुहूर्त शाम 6:38 बजे से रात 8:55 बजे तक रहेगा।
शिव जी की पूजा विधि
- सुबह जल्दी उठकर व्रत का संकल्प लें और स्नान करें।
- मंदिर की सफाई करें और गंगाजल का छिड़काव करें।
- एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर शिव और पार्वती की मूर्ति स्थापित करें।
- शिव का अभिषेक कच्चे दूध, गंगाजल और शुद्ध जल से करें।
- भगवान शिव को बेलपत्र, धतूरा और भांग अर्पित करें।
- भोग में खीर, फल और हलवा अर्पित करें।
- माता पार्वती को 16 शृंगार की सामग्री अर्पित करें।
- शिव चालीसा का पाठ करें।
- दीप जलाकर आरती करें और मंत्रों का जप करें।
- अंत में प्रसाद बांटें।
शिव जी के मंत्र
- ॐ नम: शिवाय
- ॐ नमो भगवते रूद्राय
- ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात
- ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
- उवार्रुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्
- कर्पूरगौरं करुणावतारं
संसारसारम् भुजगेन्द्रहारम् । - सदावसन्तं हृदयारविन्दे
भवं भवानीसहितं नमामि ॥