Newzfatafatlogo

फरीदाबाद में रामलीला का चौथा दिन: सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र का नाटक

फरीदाबाद में आयोजित रामलीला के चौथे दिन, सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र पर आधारित नाटक का मंचन हुआ। इस नाटक में अनिल चावला, योगांधा वशिष्ठ, और नेत्रपाल शर्मा जैसे कलाकारों ने अपने अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। नाटक की कहानी में राजा हरिश्चंद्र की सत्यनिष्ठा और उनके संघर्ष को दर्शाया गया। दर्शकों ने कलाकारों के प्रदर्शन की सराहना की और नाटक के अंत में ऋषि विश्वामित्र ने हरिश्चंद्र को परीक्षा में सफल घोषित किया। जानें इस नाटक की पूरी कहानी और कलाकारों के बेहतरीन अभिनय के बारे में।
 | 
फरीदाबाद में रामलीला का चौथा दिन: सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र का नाटक

रामलीला में राजा हरिश्चंद्र का मंचन


  • सत्य से नहीं डिगे राजा हरिश्चंद्र, विश्वामित्र ने मानी हार


फरीदाबाद। शहर में आयोजित श्रद्धा रामलीला के चौथे दिन भगवान राम के पूर्वज सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र पर आधारित नाटक का प्रदर्शन किया गया। इस नाटक में अनिल चावला ने हरिश्चंद्र, योगांधा वशिष्ठ ने तारा, नेत्रपाल शर्मा ने नक्षत्र, हिमानी शर्मा ने चंद्रकला और ऋषि हंस ने रोहित का किरदार निभाया। दर्शकों ने उनके अभिनय को बहुत सराहा। कहानी की शुरुआत देवराज इंद्र की सभा से होती है, जहां ऋषि वशिष्ठ (नेत्रपाल शर्मा) आते हैं। इंद्र (राजकुमार ढींगरा) उनसे पूछते हैं कि वह कहां से आए हैं, तो वशिष्ठ बताते हैं कि वह सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की राजधानी अयोध्या से लौटे हैं।


सभा में उपस्थित ऋषि विश्वामित्र (राजेश खुराना) हरिश्चंद्र को सत्यवादी कहे जाने पर आपत्ति जताते हैं। वशिष्ठ उन्हें चुनौती देते हैं कि यदि किसी को संदेह है, तो वह हरिश्चंद्र की परीक्षा ले सकता है। इसके बाद विश्वामित्र हरिश्चंद्र से जोगन (असावरी) के माध्यम से उनका राजपाट छीन लेते हैं और उन्हें जंगल में भेज देते हैं। विश्वामित्र अपने शिष्य नक्षत्र को निर्देश देते हैं कि वह एक महीने में दो भार सोना लेकर लौटे।


नक्षत्र के रूप में नेत्रपाल शर्मा का शानदार प्रदर्शन

जंगल में नक्षत्र हरिश्चंद्र को परेशान करता है। नाटक में नेत्रपाल शर्मा ने नक्षत्र का किरदार निभाते हुए दर्शकों का दिल जीत लिया। उन्होंने क्रोध और हास्य का बेहतरीन मिश्रण पेश किया। निर्देशक अनिल चावला ने राजा हरिश्चंद्र के रूप में, योगंधा वशिष्ठ ने तारा के रूप में और ऋषि हंस ने रोहित के रूप में उत्कृष्ट अभिनय किया, जिससे दर्शकों की आंखों में आंसू आ गए।


दर्शकों की वाहवाही और नाटक का अंत

कवयित्री हिमानी शर्मा ने सेठानी चंद्रकला के रूप में भी प्रशंसा प्राप्त की। धनपत के रूप में आदित्य शर्मा ने भी दर्शकों का दिल जीता। नाटक में हरिश्चंद्र अपनी पत्नी और तारा को एक सेठ (विजय कण्ठा) को बेच देते हैं और स्वयं श्मशान घाट में शवों का अंतिम संस्कार करने लगते हैं। जब उनकी पत्नी तारा उनके बेटे रोहित का शव लेकर श्मशान घाट पहुंचती हैं, तब भी वह सत्यनिष्ठा से नहीं डिगते। वह तारा से अंतिम संस्कार के लिए शुल्क मांगते हैं।


नाटक के अंत में ऋषि विश्वामित्र प्रकट होते हैं और हरिश्चंद्र को परीक्षा में सफल घोषित करते हैं। इसके बाद उनका राजपाट लौटाया जाता है और रोहित को जीवित किया जाता है। अंत में ऋषि वशिष्ठ का आगमन होता है, जो विश्वामित्र पर व्यंग्य करते हैं।