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भगवान गणेश की चालीसा: विघ्नों का नाश और सुख-समृद्धि का साधन

भगवान श्री गणेश को विघ्नों का नाशक माना जाता है। उनकी पूजा से सभी बाधाएं दूर होती हैं। गणेश चालीसा का पाठ करने से भक्त को सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं। इस लेख में हम गणेश चालीसा के महत्व और पाठ विधि के बारे में जानेंगे। बुधवार के दिन गणेश चालीसा का पाठ करने से सभी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। जानें कैसे करें गणेश चालीसा का पाठ और इसके लाभ।
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भगवान गणेश की चालीसा: विघ्नों का नाश और सुख-समृद्धि का साधन

भगवान गणेश की पूजा का महत्व

हिंदू धर्म में भगवान श्री गणेश को विघ्नों का नाशक माना जाता है। उनकी पूजा से सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं। मान्यता है कि श्री गणेश चालीसा का पाठ करने से भक्त को सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं। इस विशेष पाठ का प्रभाव जल्दी ही दिखाई देने लगता है। इस दिन भगवान श्री गणेश की पूजा करने से सभी विघ्न-बाधाएं हमेशा के लिए समाप्त हो जाती हैं।


गणेश चालीसा का पाठ

यदि आप भगवान श्री गणेश की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं, तो बुधवार के दिन गणेश चालीसा का पाठ अवश्य करें। इस दिन पाठ करने से सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं। इस लेख में हम गणेश चालीसा के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।


श्री गणेश जी की चालीसा

दोहा


जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल।


विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥


चौपाई


जय जय जय गणपति गणराजू। मंगल भरण करण शुभ काजू॥


जय गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्घि विधाता॥


वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥


राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥


पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥


सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित॥


धनि शिवसुवन षडानन भ्राता। गौरी ललन विश्व-विख्याता॥


ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे। मूषक वाहन सोहत द्घारे॥


कहौ जन्म शुभ-कथा तुम्हारी। अति शुचि पावन मंगलकारी॥


एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी॥


भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा॥


अतिथि जानि कै गौरि सुखारी। बहुविधि सेवा करी तुम्हारी॥


अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥


मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला। बिना गर्भ धारण, यहि काला॥


गणनायक, गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम, रुप भगवाना॥


अस कहि अन्तर्धान रुप है। पलना पर बालक स्वरुप है॥


बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना॥


सकल मगन, सुखमंगल गावहिं। नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं॥


शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं। सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं॥


लखि अति आनन्द मंगल साजा। देखन भी आये शनि राजा॥


निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं। बालक, देखन चाहत नाहीं॥


गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो। उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो॥


कहन लगे शनि, मन सकुचाई। का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई॥


नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ। शनि सों बालक देखन कहाऊ॥


पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा। बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा॥


गिरिजा गिरीं विकल हुए धरणी। सो दुख दशा गयो नहीं वरणी॥


हाहाकार मच्यो कैलाशा। शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा॥


तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो। काटि चक्र सो गज शिर लाये॥


बालक के धड़ ऊपर धारयो। प्राण, मंत्र पढ़ि शंकर डारयो॥


नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे। प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वन दीन्हे॥


बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा। पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा॥


चले षडानन, भरमि भुलाई। रचे बैठ तुम बुद्घि उपाई॥


धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे। नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥


चरण मातु-पितु के धर लीन्हें। तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥


तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई। शेष सहसमुख सके न गाई॥


मैं मतिहीन मलीन दुखारी। करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी॥


भजत रामसुन्दर प्रभुदासा। जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा॥


अब प्रभु दया दीन पर कीजै। अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै॥


श्री गणेश यह चालीसा। पाठ करै कर ध्यान॥


नित नव मंगल गृह बसै। लहे जगत सन्मान॥


दोहा


सम्वत अपन सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।


पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश॥