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भाई दूज: यम द्वितीया का महत्व और परंपरा

भाई दूज एक विशेष पर्व है जो भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत करता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और खुशहाली के लिए प्रार्थना करती हैं, जबकि भाई उपहार और आशीर्वाद देते हैं। इसे यम द्वितीया भी कहा जाता है, जो यमराज और यमुनाजी की कथा से जुड़ा है। जानें इस पर्व का महत्व, तिलक के लिए शुभ समय और परंपराएं।
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भाई दूज: यम द्वितीया का महत्व और परंपरा

भाई दूज का महत्व और परंपरा


भाई दूज एक महत्वपूर्ण पर्व है जो भाई-बहन के रिश्ते को और भी मजबूत बनाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और खुशहाल जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं, जबकि भाई अपनी बहनों को उपहार और आशीर्वाद प्रदान करते हैं। इसे यम द्वितीया भी कहा जाता है, जो यमराज और उनकी बहन यमुनाजी की कथा से संबंधित है।


तिलक के लिए शुभ समय



  • अभिजित काल: सुबह 11:43 बजे से दोपहर 12:28 बजे तक

  • अमृत काल: शाम 06:57 बजे से रात 08:45 बजे तक


यम द्वितीया का महत्व


भाई दूज को यम द्वितीया कहा जाता है, क्योंकि यह यमराज और उनकी बहन यमुनाजी की कहानी से जुड़ा हुआ है। प्राचीन मान्यता के अनुसार, यमराज अपनी बहन के घर गए थे, जहां यमुनाजी ने उनका तिलक किया और उन्हें भोजन कराया। इस पर यमराज ने वचन दिया कि जो भाई अपनी बहन को इस दिन बुलाकर तिलक और भोजन कराएगा, उसकी बहन हमेशा सुरक्षित और समृद्ध रहेगी।


बहनों की भूमिका और पर्व की परंपरा


भाई दूज पर बहनें अपने भाइयों का गर्मजोशी से स्वागत करती हैं और उनके माथे पर तिलक करती हैं। वे उनकी लंबी उम्र और खुशहाली की कामना करती हैं। भाई भी इस अवसर पर अपनी बहनों को उपहार देकर उनके प्रति प्रेम और सुरक्षा का वचन देते हैं। रक्षाबंधन और भाई दूज दोनों भाई-बहन के रिश्ते को मानते हैं, लेकिन भाई दूज बहन के स्नेह और सेवा की भावना को उजागर करता है।