महालया: दुर्गा पूजा की शुरुआत का प्रतीक और इसका महत्व

महालया का महत्व
पितृ पक्ष का अंतिम दिन महालया
महालय, पितृ पक्ष श्राद्ध का 16वां दिन है, जिसे पितृ पक्ष के समापन का प्रतीक माना जाता है। यह दिन न केवल पितृ पक्ष की समाप्ति का संकेत है, बल्कि शारदीय नवरात्र की शुरुआत का भी प्रतीक है। इसे माता दुर्गा के धरती पर आगमन के दिन के रूप में भी मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में धूमधाम से मनाया जाता है।
महालया कब मनाया जाएगा?
पंचांग के अनुसार, हर साल आश्विन माह की अमावस्या तिथि, जिसे सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है, महालया के रूप में मनाई जाती है। इस वर्ष, पितृ पक्ष का अंतिम दिन रविवार, 21 सितंबर को है, इसलिए महालया भी इसी दिन मनाया जाएगा।
महालया का महत्व
महालया, दुर्गा पूजा से एक सप्ताह पहले मनाया जाता है और इसी दिन से दुर्गा पूजा के उत्सव की शुरुआत होती है। मान्यता है कि इस दिन देवी दुर्गा कैलाश से पृथ्वी पर आने के लिए अपनी यात्रा आरंभ करती हैं। इस दिन मां दुर्गा का स्वागत करने के लिए उनकी पूजा की जाती है।
महालय के दिन देवी दुर्गा का अवतरण
ऐसी मान्यता है कि महालया के दिन देवी दुर्गा पृथ्वी पर अवतरित होती हैं और भक्तों पर कृपा बरसाती हैं। दुर्गा पूजा से पहले मूर्तिकार देवी की मूर्तियों का निर्माण आरंभ करते हैं, लेकिन महालया के दिन ही मूर्तियों की आंखों को रंगा जाता है।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, महिषासुर को वरदान प्राप्त था कि उसे कोई भी देवता या मनुष्य नहीं हरा सकता। इस कारण वह आतंक फैलाने लगा। तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर ने आदिशक्ति को प्रकट किया। आदिशक्ति ने युद्ध में महिषासुर को परास्त किया और उसका वध किया। इस युद्ध के दौरान देवी दुर्गा को विभिन्न देवताओं ने हथियार प्रदान किए।
महालय के दिन क्या करें?
- इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान-ध्यान करना चाहिए।
- देवी दुर्गा के मंत्रों का जप और महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
- भक्त देवी से प्रार्थना करते हैं कि वे उन्हें जीवन में समृद्धि, खुशी और सुरक्षा प्रदान करें।
- इसके अगले दिन शारदीय नवरात्र की शुरुआत होती है और कलश स्थापना के साथ ही प्रथम देवी शैलपुत्री की आराधना की जाती है।