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मातृ नवमी 2025: तिथि, पूजा विधि और महत्व

मातृ नवमी 2025 का श्राद्ध 15 सितंबर को मनाया जाएगा। यह दिन मां, बहन और बेटियों की आत्मा की शांति के लिए विशेष माना जाता है। जानें इस दिन के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्वपूर्ण कार्यों के बारे में। मातृ नवमी का श्राद्ध परिवार में सुख और समृद्धि लाने में सहायक होता है। इस दिन किए गए कार्यों से पितरों की कृपा प्राप्त होती है।
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मातृ नवमी 2025: तिथि, पूजा विधि और महत्व

मातृ नवमी 2025: विशेष महत्व

हिंदू धर्म में पितृपक्ष का समय अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। यह वह पवित्र अवधि है जब हम अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण करते हैं। इस पखवाड़े में हर दिन का अपना महत्व है, लेकिन नवमी तिथि को मातृ नवमी के रूप में विशेष मान्यता प्राप्त है। इस दिन मां, बहन और बेटियों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। यदि आप मातृ नवमी का श्राद्ध श्रद्धा और भक्ति से करते हैं, तो आपके पितरों का आशीर्वाद सदैव आपके साथ रहेगा। आइए जानते हैं मातृ नवमी की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी।


मातृ नवमी 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त

साल 2025 में मातृ नवमी का श्राद्ध 15 सितंबर, सोमवार को मनाया जाएगा। इस दिन श्राद्ध और तर्पण के लिए कुछ विशेष शुभ मुहूर्त हैं, जो पूजा को और प्रभावी बनाते हैं।


कुतुप मुहूर्त: सुबह 11:51 से दोपहर 12:41 तक (49 मिनट)


रौहिण मुहूर्त: दोपहर 12:41 से 1:30 तक (49 मिनट)


अपराह्न काल: दोपहर 1:30 से 3:58 तक (2 घंटे 28 मिनट)


इन मुहूर्तों में श्राद्ध करने से पितरों को शांति मिलती है और परिवार पर उनका आशीर्वाद बरसता है।


मातृ नवमी 2025 की पूजा विधि

मातृ नवमी का श्राद्ध करने की विधि सरल और प्रभावी है। इसे सही तरीके से करने से पितरों की आत्मा को सुकून मिलता है।


सर्वप्रथम सूर्योदय से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। फिर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके तर्पण करें। तर्पण के लिए जल में काला तिल, अक्षत और फूल मिलाएं और अंजलि दें। इसके बाद जौ का आटा, चावल, तिल और शहद से पिंड बनाकर पितरों को अर्पित करें।


श्राद्ध के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं, जिसमें खीर, पूड़ी और पितरों की पसंद की चीजें शामिल करें। फिर गाय को चारा खिलाएं और जरूरतमंदों को दान दें। अंत में, पितरों से क्षमा मांगें और उनका आशीर्वाद लें।


मातृ नवमी का महत्व

मातृ नवमी का दिन मातृ पक्ष यानी मां, बहन और बेटियों के लिए श्राद्ध करने का सबसे उत्तम दिन है। इस दिन श्राद्ध करने से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है। मान्यता है कि यह श्राद्ध वंश और कुल की उन्नति में मदद करता है। यदि आपको अपने किसी प्रियजन (महिला) की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं है, तो भी इस दिन उनका श्राद्ध कर सकते हैं। मातृ नवमी का श्राद्ध करने से जीवन में मातृत्व और स्नेह की कमी नहीं होती, और यह दिवंगत आत्माओं को मोक्ष दिलाने में भी सहायक होता है।


मातृ नवमी के दिन ये काम जरूर करें

मातृ नवमी का दिन कुछ विशेष कार्यों के लिए भी जाना जाता है, जो पितरों की कृपा पाने में सहायक होते हैं।


इस दिन तुलसी पूजन अवश्य करें, क्योंकि श्राद्ध में तुलसी का विशेष महत्व है। पितरों से जुड़े कार्यों में तांबे के बर्तन का उपयोग करें। किसी भी महिला का अपमान न करें, न सिर्फ इस दिन बल्कि हमेशा सम्मान दें, इससे शुभ फल मिलता है। यदि संभव हो तो जरूरतमंद सुहागन महिलाओं को लाल साड़ी, चूड़ियां, सिंदूर आदि का दान करें। घर आए किसी भी व्यक्ति को खाली हाथ न लौटाएं और उन्हें भोजन जरूर कराएं।


मातृ नवमी के दिन क्या करें?

मातृ नवमी पर कुछ खास कार्य करने से पितरों को विशेष शांति मिलती है। दिवंगत मातृ पितरों के लिए श्राद्ध और तर्पण अवश्य करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं, खासकर ब्राह्मण पत्नी को दान देना शुभ माना जाता है। वृद्ध महिलाओं को उपहार देना भी पुण्यकारी है। पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाएं और मातृ शक्ति को याद करें। गाय, कुत्ता, मछली, चींटी और कौवे को भोजन और जल दें, क्योंकि मान्यता है कि इससे पितरों को भोजन मिलता है और उनकी आत्मा को शांति मिलती है।


मातृ नवमी क्यों है खास?

मातृ नवमी का श्राद्ध दिवंगत मातृ पितरों की आत्मा को शांति देता है और उन्हें प्रसन्न करता है। यह दिन वंश और कुल की उन्नति के लिए खास माना जाता है। इस दिन किया गया श्राद्ध जीवन में मातृत्व, स्नेह और खुशहाली लाता है।