मार्गशीर्ष अमावस्या: पूजा विधि और महत्व जानें
भगवान विष्णु, चंद्र देव और पितरों को समर्पित है मार्गशीर्ष अमावस्या
मार्गशीर्ष अमावस्या का महत्व
मार्गशीर्ष का महीना हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता में कहा है, 'महीनों में मैं मार्गशीर्ष हूं'। इस महीने की अमावस्या को मार्गशीर्ष अमावस्या या अगहन अमावस्या कहा जाता है, जो कार्तिक अमावस्या के समान महत्वपूर्ण है। यह तिथि भगवान विष्णु, चंद्र देव और पितरों को समर्पित है। पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष अमावस्या 20 नवंबर को मनाई जाएगी।
शुभ मुहूर्त
- सूर्योदय का समय: लगभग 06:48 बजे स्नान, संकल्प और दैनिक पूजा का आरंभ करने का उत्तम समय।
- विष्णु पूजा का समय: प्रात: काल का समय सर्वोत्तम माना गया है।
- पितृ तर्पण का मुहूर्त: प्रात: 11:30 बजे से 12:30 बजे के बीच तर्पण और पिंडदान करना श्रेष्ठ है।
- अभिजीत मुहूर्त: दोपहर के आसपास (लगभग 11:45 से 12:28) पूजा या दान के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की कृपा
मार्गशीर्ष महीने को भगवान श्रीकृष्ण का माह माना जाता है। इस अमावस्या पर भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है। व्रत रखने के साथ सत्यनारायण भगवान की कथा का पाठ करने से जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं।
प्रात: स्नान व संकल्प
अमावस्या के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने से शरीर और मन दोनों शुद्ध होते हैं। साफ वस्त्र पहनकर अपने पूजा-स्थान में संकल्प लें कि आप आज पितृ-कार्य, दान और विष्णु-पूजन पूर्ण श्रद्धा से करेंगे।
पितृ तर्पण और पिंडदान
मार्गशीर्ष अमावस्या का मुख्य उद्देश्य पितरों को तृप्त करना है। तिल, अक्षत, जल और पुष्प के साथ पितृ-तर्पण करें। पिंडदान संभव हो तो पवित्र स्थल पर, अन्यथा घर पर विधिपूर्वक किया जा सकता है। दीपदान पितृ-शांति का विशेष कारक माना जाता है।
विष्णुलक्ष्मी पूजा
इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की संयुक्त उपासना से परिवार में धन, सौभाग्य और प्रसन्नता बढ़ती है। उन्हें जल, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें। 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' या 'श्री सूक्त' का जप अत्यंत शुभ माना गया है।
दान-पुण्य
काले तिल, गुड़, अन्न, घी, कंबल, गर्म वस्त्र या आवश्यकता की वस्तुओं का दान इस दिन विशेष रूप से पुण्यकारी माना गया है। भूखे लोगों, गाय, कुत्तों और पक्षियों को भोजन कराना भी आध्यात्मिक रूप से अत्यंत उत्तम है।
शाम का दीपदान और मंत्र-जप
संध्या समय घर के उत्तर दिशा में दीप जलाना पितृ-शांति और नकारात्मक ऊर्जा के निवारण का श्रेष्ठ उपाय है। 'ॐ पितृदेवाय नम:' का जप मन को स्थिरता और पितरों की कृपा दोनों प्रदान करता है।
