मार्गशीर्ष विनायक चतुर्थी: पूजा विधि और महत्व
मार्गशीर्ष विनायक चतुर्थी का व्रत हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा से जीवन में आने वाले विघ्न दूर होते हैं और भक्त को ज्ञान, बुद्धि और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। जानें इस व्रत की पूजा विधि, धार्मिक महत्व और इससे मिलने वाले फलों के बारे में।
| Nov 24, 2025, 11:33 IST
मार्गशीर्ष विनायक चतुर्थी व्रत का महत्व
आज मार्गशीर्ष मास की विनायक चतुर्थी का व्रत है, जो हिंदू धर्म में हर महीने की चतुर्थी तिथि पर भगवान श्रीगणेश की पूजा के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है। मार्गशीर्ष मास की यह चतुर्थी अन्य चतुर्थियों की तुलना में अधिक महत्व रखती है। विघ्नहर्ता और बुद्धि के देवता के रूप में पूजे जाने वाले भगवान गणेश की आराधना से सफलता, समृद्धि, शांति और मानसिक स्पष्टता की प्राप्ति होती है। आइए, हम मार्गशीर्ष विनायक चतुर्थी के व्रत का महत्व और पूजा विधि के बारे में विस्तार से जानते हैं।
मार्गशीर्ष विनायक चतुर्थी व्रत की जानकारी
मार्गशीर्ष मास को देवताओं का प्रिय माना जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से जीवन में आने वाले सभी विघ्न दूर होते हैं और भक्त को ज्ञान, बुद्धि और सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस वर्ष यह चतुर्थी 24 नवंबर को मनाई जाएगी। स्कंद पुराण में इसे विशेष सिद्धिप्रद बताया गया है। हर महीने शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाए जाने वाली यह विनायक चतुर्थी एक अत्यंत शुभ दिन है, जिसमें गहरी आध्यात्मिक शक्ति होती है।
मार्गशीर्ष विनायक चतुर्थी का धार्मिक महत्व
गणेश पुराण, पद्म पुराण और स्कंद पुराण में मार्गशीर्ष मास की विनायक चतुर्थी को विशेष सिद्धिप्रद बताया गया है। पंडितों के अनुसार, इस दिन श्रीगणेश की पूजा करने से भक्तों की मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं। नए कार्यों की शुरुआत, शिक्षा, करियर, व्यवसाय और पारिवारिक जीवन में आने वाली रुकावटों को दूर करने के लिए यह तिथि अत्यंत कल्याणकारी मानी जाती है। इस दिन की गई पूजा का प्रभाव कई गुना बढ़कर मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, विनायक चतुर्थी का व्रत रखने और मध्याह्न काल में गणेश जी की पूजा करने से भक्तों के विघ्न या बाधाएं दूर होते हैं। यह दिन विशेष रूप से बुद्धि, ज्ञान, समृद्धि और व्यापार में सफलता के लिए बहुत शुभ माना जाता है।
मार्गशीर्ष विनायक चतुर्थी पर पूजा विधि
पंडितों के अनुसार, मार्गशीर्ष विनायक चतुर्थी व्रत के दिन पूजन के लिए घर के मंदिर या किसी शुभ स्थान पर लकड़ी के पाटे पर लाल या पीला वस्त्र बिछाकर श्रीगणेश की प्रतिमा या स्वच्छ तस्वीर स्थापित की जाती है। इसके बाद पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख कर बैठकर व्रत का संकल्प लिया जाता है। संकल्प लेते समय भगवान गणेश से परिवार की सुख-समृद्धि, ज्ञान-वृद्धि और विघ्नों के नाश की कामना की जाती है। इसके बाद भगवान गणेश पर गंगाजल छिड़ककर जलाभिषेक किया जाता है और चंदन, रोली, अक्षत, दूर्वा, लाल पुष्प तथा सुगंधित धूप-दीप अर्पित किए जाते हैं। चतुर्थी तिथि पर गणेश जी को दूर्वा, मोदक और गुड़-तिल के लड्डू अत्यंत प्रिय माने गए हैं, इसलिए इन्हें अवश्य चढ़ाना चाहिए।
मार्गशीर्ष विनायक चतुर्थी व्रत के फल
श्रीगणेश को विघ्नहर्ता कहा गया है। पंडितों के अनुसार, इस दिन पूजा करने से जीवन में आ रहे अवरोध दूर होते हैं और सभी कार्य सुगमता से सिद्ध होते हैं। विद्यार्थियों और नौकरीपेशा लोगों के लिए यह व्रत अत्यंत लाभकारी माना गया है। यह याददाश्त, एकाग्रता और नेतृत्व क्षमता को बढ़ाता है। गणेश जी को ऋद्धि–सिद्धि का दाता कहा गया है। इस दिन की पूजा से घर में लक्ष्मी प्रवेश करती है और आर्थिक स्थिरता बढ़ती है। यह व्रत परिवार में सद्भाव, प्रेम और सकारात्मक ऊर्जा लाता है।
मार्गशीर्ष विनायक चतुर्थी व्रत की सामग्री
पंडितों के अनुसार, गणेश जी को दूर्वा घास की 21 गांठें अर्पित करें। दूर्वा गणेश जी को अत्यंत प्रिय है। उन्हें लाल फूल विशेष रूप से गुड़हल का फूल और माला चढ़ाएं। धूप, दीप और अगरबत्ती जलाएं।
मार्गशीर्ष विनायक चतुर्थी व्रत के नियम
पंडितों के अनुसार, कई भक्त सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक व्रत रखते हैं। आप फल और दूध से बनी चीज़ें खा सकते हैं, अनाज और नमक से बचें। अपने विचार पॉजिटिव और शांत रखें। शाम को उत्तर-पश्चिम दिशा में एक दीया जलाएं, जिसे गणेश के लिए अच्छा माना जाता है। ध्यान करें और अपने जीवन में मिली कृपा के लिए शुक्रिया करें।
मार्गशीर्ष विनायक चतुर्थी की पौराणिक कथा
मार्गशीर्ष विनायक चतुर्थी की कथा में दो मुख्य प्रसंग हैं: एक है शिव-पार्वती का चौपड़ खेलना और दूसरा है भगवान श्री राम की सहायता हेतु हनुमान जी का गणेश व्रत करना। चौपड़ खेल की कथा में, पार्वती जी ने एक मिट्टी के बालक को बनाया, जिसे हार-जीत का फैसला करने के लिए बनाया गया था। हनुमान जी ने भगवान राम के कार्य में सहायता के लिए विनायक चतुर्थी का व्रत किया था, जिससे उन्हें समुद्र पार करने में सफलता मिली।
