वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी: पूजा विधि और महत्व
वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी का व्रत हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह दिन भगवान गणेश की पूजा का अवसर है, जो जीवन में सुख, समृद्धि और बाधाओं से मुक्ति का प्रतीक है। इस लेख में हम जानेंगे वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी का महत्व, पूजा विधि और इस दिन के विशेष योग के बारे में। जानें कैसे इस दिन उपवास रखकर भक्त गणेश जी की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
Oct 10, 2025, 11:18 IST
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वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी का महत्व
आज वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी का व्रत मनाया जा रहा है, जो हिंदू धर्म में कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को आता है। यह दिन न केवल करवा चौथ के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने का भी एक विशेष अवसर है। वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी व्रत जीवन में नई ऊर्जा, विश्वास और संतुलन लाने का कार्य करता है। आइए जानते हैं इस व्रत का महत्व और पूजा विधि।
वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी के बारे में जानकारी
कार्तिक माह का स्थान सनातन धर्म में अत्यंत पवित्र है। इस महीने भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं, जिसे देवउठनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इसके अगले दिन तुलसी विवाह होता है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर करवा चौथ और वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी दोनों पर्व मनाए जाते हैं। हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत भगवान गणेश की पूजा से होती है। उन्हें विघ्नहर्ता और बुद्धि तथा समृद्धि के देवता माना जाता है। पंडितों के अनुसार, गणेश जी की पूजा से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं और सुख, सौभाग्य तथा धन-धान्य की वृद्धि होती है। यह दिन शुद्धि, बाधाओं से मुक्ति और मानसिक बल प्राप्त करने का प्रतीक है। भक्त इस दिन उपवास रखते हैं, पूजा करते हैं, लड्डू और दूर्वा अर्पित करते हैं, और रात में चंद्र दर्शन के साथ व्रत का समापन करते हैं।
करवा चौथ और वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी का संबंध
कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है। इस दिन संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना के लिए भगवान गणेश की विशेष पूजा की जाती है। वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी व्रत में भगवान गणेश के साथ चंद्र देवता की पूजा का विधान है।
विशेष योग में मनाया जा रहा है वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी
सनातन धर्म में उदया तिथि का महत्व है। संकष्टी चतुर्थी पर चंद्र दर्शन किया जाता है। इस साल, कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का व्रत 10 अक्टूबर को रखा जाएगा। इस दिन चंद्र दर्शन का शुभ योग शाम 08:13 बजे है।
वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी 9 अक्टूबर को रात 10:54 बजे से शुरू होगी और 10 अक्टूबर को शाम 7:38 बजे समाप्त होगी। उदयातिथि के अनुसार, वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी 10 अक्टूबर को मनाई जाएगी।
वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी का धार्मिक महत्व
हिंदू मान्यता के अनुसार, इस दिन रिद्धि-सिद्धि के दाता भगवान गणेश जी के वक्रतुण्ड स्वरूप की पूजा की जाती है। पंडितों के अनुसार, इस दिन टेढ़ी सूंड़ वाले गणपति की पूजा करने से व्यक्ति को सुख-समृद्धि और सौभाग्य प्राप्त होता है।
वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी पर पूजा विधि
पंडितों के अनुसार, इस दिन विशेष पूजा करनी चाहिए। स्नान-ध्यान के बाद गणपति की मूर्ति या चित्र को जल से पवित्र करें। फिर रोली, चंदन, हल्दी से तिलक करें और पुष्प, फल, मोदक, लड्डू, नारियल आदि अर्पित करें। पूजा के अंत में आरती करें और रात में चंद्र देवता का दर्शन कर अर्घ्य देकर व्रत को पूर्ण करें।
वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी से जुड़ी पौराणिक कथाएं
वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी की दो मुख्य पौराणिक कथाएं हैं। पहली कहानी चंद्रदेव के श्राप से जुड़ी है, जिन्होंने गणेश जी के रूप का उपहास किया था। दूसरी कहानी में, भगवान शिव और देवी पार्वती द्वारा बनाए गए मिट्टी के बालक को शिवजी के पक्ष में परिणाम बताने के कारण श्राप मिला था। गणेश जी के व्रत से उसे मुक्ति मिली।