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वट सावित्री पूर्णिमा 2025: महत्व और पूजा विधि

वट सावित्री पूर्णिमा 2025 का पर्व विवाहित महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो उनके पतियों की लंबी उम्र और सुखी दांपत्य जीवन की कामना से जुड़ा है। यह पर्व विशेष रूप से महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत में मनाया जाता है। जानें इस दिन की पूजा विधि, जो बरगद के पेड़ की पूजा और सावित्री-सत्यवान की कथा के चारों ओर घूमती है। 10 जून 2025 को मनाए जाने वाले इस पर्व का महत्व और विधि जानने के लिए पढ़ें।
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वट सावित्री पूर्णिमा 2025: महत्व और पूजा विधि

वट सावित्री पूर्णिमा का महत्व

हिंदू धर्म में वट सावित्री पूर्णिमा का व्रत विवाहित महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह व्रत उनके पतियों की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सुखी दांपत्य जीवन की कामना से जुड़ा हुआ है।


उत्सव का आयोजन

यह पर्व विशेष रूप से महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है और सावित्री-सत्यवान की पौराणिक कथा का स्मरण किया जाता है, जो प्रेम और समर्पण का प्रतीक है।


2025 में व्रत का दिन

वट सावित्री पूर्णिमा 10 जून 2025 को मंगलवार के दिन मनाई जाएगी। पूर्णिमा तिथि सुबह 11:35 बजे शुरू होगी और 11 जून को दोपहर 1:13 बजे समाप्त होगी। इस दिन सुहागिन महिलाएं प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनेंगी और व्रत का संकल्प लेंगी।


पूजा विधि

पूजा की थाली में सुहाग सामग्री जैसे सिंदूर, रोली, चावल, फूल और मिठाई सजाएं। बरगद के पेड़ के पास जाकर उसे जल और दूध अर्पित करें। इसके बाद, लाल या सूती धागे को पेड़ के चारों ओर 7 या 21 बार लपेटते हुए परिक्रमा करें। इसके बाद सावित्री-सत्यवान की कथा सुनें या पढ़ें।


आरती और आशीर्वाद

पूजा के अंत में आरती करें और पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करें। महिलाएं एक-दूसरे को सौभाग्यवती भव का आशीर्वाद दें और सुहाग सामग्री का आदान-प्रदान करें।


व्रत का संदेश

यह व्रत न केवल पति की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह महिलाओं में आत्मविश्वास और समर्पण की भावना को भी जागृत करता है। सावित्री की तरह, जो अपने पति सत्यवान को यमराज से वापस लाई थीं, यह व्रत दृढ़ संकल्प और प्रेम का प्रतीक है।