Newzfatafatlogo

वृश्चिक संक्रांति: जानें पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

वृश्चिक संक्रांति, जो 16 नवंबर 2025 को मनाई जाएगी, सूर्य के तुला से वृश्चिक राशि में प्रवेश का प्रतीक है। इस दिन विशेष पूजा विधि और शुभ मुहूर्त का पालन किया जाता है। जानें इस दिन क्या करना चाहिए और किन चीजों से बचना चाहिए। यह पर्व आत्मा की शुद्धि और पुण्य के लिए महत्वपूर्ण है।
 | 
वृश्चिक संक्रांति: जानें पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

वृश्चिक संक्रांति का महत्व


जानें पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को ग्रहों का राजा माना जाता है। सूर्य आत्मा, पिता, सम्मान, नेतृत्व और ऊर्जा का प्रतीक है। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में गोचर होना संक्रांति कहलाता है। जब सूर्य तुला राशि से निकलकर वृश्चिक राशि में प्रवेश करता है, तब वृश्चिक संक्रांति का पर्व मनाया जाता है।


वृश्चिक संक्रांति कब मनाई जाती है?

जब सूर्य तुला राशि से निकलकर मंगल की राशि वृश्चिक में प्रवेश करता है, तब वृश्चिक संक्रांति का आयोजन होता है। इस दिन सूर्य की विधिपूर्वक पूजा की जाती है और जल अर्पित किया जाता है। स्नान और दान का भी विशेष महत्व होता है।


वृश्चिक संक्रांति की तिथि

पंचांग के अनुसार, सूर्य 16 नवंबर 2025 को तुला राशि से निकलकर वृश्चिक में प्रवेश करेगा। यही क्षण वृश्चिक संक्रांति के रूप में मनाया जाएगा। इस दिन रविवार है।


वृश्चिक संक्रांति का शुभ मुहूर्त

संक्रांति के दिन स्नान, दान और पूजा के लिए पुण्यकाल महत्वपूर्ण होता है। 16 नवंबर को सुबह 08:02 से दोपहर 01:45 तक वृश्चिक संक्रांति का पुण्यकाल रहेगा, जिसकी अवधि 5 घंटे 43 मिनट है। महापुण्यकाल 11:58 से 01:45 तक रहेगा।


वृश्चिक संक्रांति पर क्या करें?

इस दिन उबटन करके स्नान करना लाभकारी है। स्नान के बाद सूर्य को अर्घ्य दें और विधिपूर्वक पूजा करें। भगवान सूर्य के मंत्रों का जाप करें। इस दिन तिल, खिचड़ी, तेल और धन का दान करें।


वृश्चिक संक्रांति पर क्या न करें?

इस दिन मांस, मछली, प्याज, लहसुन, शराब और मसालेदार भोजन से बचें। आलस्य और क्रोध से दूर रहें। अशुद्ध या बासी भोजन न करें और सूर्य को अर्घ्य दिए बिना भोजन न करें।