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वैकासी विसाकम महोत्सव: भगवान मुरुगन का जन्मोत्सव

वैकासी विसाकम महोत्सव, जो भगवान मुरुगन के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है, वृषभ मास में आता है। यह पर्व विशेष रूप से दक्षिण भारत में मनाया जाता है। 2025 में, यह पर्व 9 जून को मनाया जाएगा। इस दिन भक्त मंदिरों में विशेष पूजा और अभिषेक करते हैं। जानें इस पर्व का महत्व, भगवान मुरुगन का संबंध भगवान शिव से और पूजा की विधि के बारे में।
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वैकासी विसाकम महोत्सव: भगवान मुरुगन का जन्मोत्सव

वृषभ मास का महत्व

वैकासी विसाकम महोत्सव: वृषभ मास, जिसे तमिल संस्कृति में वैकासी कहा जाता है, हिंदू पंचांग का एक महत्वपूर्ण महीना है। यह आमतौर पर मई से जून के बीच आता है, जब सूर्य वृषभ राशि में प्रवेश करता है। इस मास का विशेष महत्व है क्योंकि यह भगवान मुरुगन (कार्तिकेय) के जन्म से जुड़ा हुआ है। हिंदू पंचांग के अनुसार, वृषभ मास वर्ष का दूसरा महीना है और यह प्रकृति की सुंदरता और उर्वरता का प्रतीक है। इस दौरान भारत में गर्मी अपने चरम पर होती है, लेकिन यह मास आध्यात्मिक और धार्मिक गतिविधियों के लिए विशेष माना जाता है। वृषभ मास में कई महत्वपूर्ण त्योहार और व्रत मनाए जाते हैं, जिनमें अक्षय तृतीया, नरसिंह जयंती और वैकासी विसाकम प्रमुख हैं।


भगवान मुरुगन का जन्मदिन कब है?

वैकासी विसाकम, जो वैकासी मास में आता है, एक प्रमुख पर्व है, जिसे नक्षत्र विसाकम (विशाखा) के दिन पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से दक्षिण भारत, खासकर तमिलनाडु में भगवान मुरुगन के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। साल 2025 में, वैकासी विसाकम 9 जून को मनाया जाएगा, जब विशाखा नक्षत्र और पूर्णिमा का संयोग होगा। विशाखा नक्षत्र 8 जून 2025 को दोपहर 12:42 बजे शुरू होकर 9 जून 2025 को दोपहर 3:31 बजे तक रहेगा।


भगवान मुरुगन कौन हैं?

भगवान मुरुगन, जिन्हें कार्तिकेय, स्कंद या सुब्रमण्य के नाम से भी जाना जाता है, भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं। उनकी पूजा विशेष रूप से तमिल समुदाय में होती है। वैकासी विसाकम के दिन भक्त मुरुगन मंदिरों में विशेष पूजा, अभिषेक और अर्चना करते हैं। तमिलनाडु के प्रसिद्ध मंदिरों जैसे पलनी, तिरुचेंदुर और स्वामिमलई में हजारों भक्त एकत्रित होते हैं। भक्त इस दिन व्रत रखते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं और भगवान मुरुगन की कथाओं का पाठ करते हैं। वैकासी विसाकम का महत्व धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दोनों दृष्टियों से है।


भगवान मुरुगन का भगवान शिव से संबंध

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान मुरुगन का जन्म वैकासी मास में विशाखा नक्षत्र के दिन हुआ था। उनका जन्म राक्षसों, विशेष रूप से तारकासुर, के अत्याचारों को समाप्त करने के लिए हुआ था। भगवान शिव की दिव्य शक्ति से उत्पन्न मुरुगन ने तारकासुर का वध कर धर्म की स्थापना की। इस कारण उन्हें युद्ध और विजय का प्रतीक माना जाता है। उनकी छह सिर और बारह भुजाएं उनके ज्ञान, शक्ति और बुद्धि का प्रतीक हैं।


मंदिरों में पूजा का आयोजन

वैकासी विसाकम के दिन मंदिरों में विशेष उत्सव आयोजित किए जाते हैं। भक्त सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और मंदिरों में जाकर भगवान मुरुगन की पूजा करते हैं। कई लोग इस दिन उपवास रखते हैं और केवल फल या हल्का भोजन ग्रहण करते हैं। मंदिरों में भगवान मुरुगन की मूर्ति को दूध, शहद और पंचामृत से स्नान कराया जाता है। भक्त कावड़ी लेकर मंदिरों की यात्रा करते हैं और भगवान को फूल, नारियल और अन्य प्रसाद चढ़ाते हैं।


इस दिन कई स्थानों पर भव्य शोभायात्राएं निकाली जाती हैं, जिनमें भगवान मुरुगन की मूर्ति को रथ पर सजाकर ले जाया जाता है। भजन, कीर्तन और नृत्य इस उत्सव का हिस्सा होते हैं। तमिलनाडु के कुछ मंदिरों में, विशेष रूप से तिरुचेंदुर में, समुद्र तट पर पूजा और स्नान का आयोजन किया जाता है, जो इस पर्व को और भी विशेष बनाता है।