वैकुंठ चतुर्दशी: जानें इस खास दिन का महत्व और पूजा विधि
                           
                        वैकुंठ चतुर्दशी का पर्व
हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को वैकुंठ चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष, यह विशेष अवसर मंगलवार, 4 नवंबर 2025 को आएगा। इस दिन का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है, क्योंकि मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने काशी नगरी में कदम रखा था और भगवान शिव की पूजा कर उनका आशीर्वाद लिया था। इस दिन शिव और विष्णु की आराधना करने से भक्तों को मोक्ष और अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है।
वैकुंठ चतुर्दशी का महत्व
शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शंकर की एक साथ पूजा करने से पापों का नाश होता है और भक्त को वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। काशी में इस पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है, जहां भक्त रात में विष्णु सहस्रनाम और शिव स्तुति का पाठ करते हैं। कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने इस दिन भगवान शिव को एक हजार कमल पुष्प अर्पित किए थे।
पूजा का विशेष समय
ज्योतिषियों के अनुसार, इस बार वैकुंठ चतुर्दशी की पूजा के लिए निशीथ काल का समय सबसे शुभ रहेगा। इस विशेष समय में केवल 52 मिनट का मुहूर्त उपलब्ध है।
निशीथ काल: रात 11:39 से 12:31 बजे तक। इस समय भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी दोष दूर होते हैं और साधक को धन, सुख और शांति की प्राप्ति होती है।
शुभ योगों का निर्माण
इस वर्ष वैकुंठ चतुर्दशी के दिन कई शुभ योग बन रहे हैं, जो इस पर्व के महत्व को और बढ़ा देंगे।
1. रवि योग: सुबह 6:08 से दोपहर 12:34 बजे तक
2. सर्वार्थ सिद्धि योग: 4 नवंबर दोपहर 12:34 बजे से शुरू
3. अमृत सिद्धि योग: दोपहर 12:34 बजे से
4. अभिजीत मुहूर्त: दिन 11:24 से 12:09 बजे तक
5. भद्रावास योग: रात 10:36 बजे से पूरी रात
इन योगों में पूजा करने से लक्ष्मी-नारायण की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
पूजन विधि
इस दिन भक्त भगवान विष्णु और महादेव की आराधना करते हैं। पूजा में तुलसी, कमल पुष्प और शुद्ध घी के दीपक का उपयोग किया जाता है। भक्त व्रत रखकर भगवान से वैकुंठ धाम की प्राप्ति की प्रार्थना करते हैं। वैकुंठ चतुर्दशी का यह पर्व भक्ति, वैराग्य और आत्मशुद्धि का प्रतीक है। जब भगवान स्वयं अपने आराध्य की पूजा करें, तो यह संदेश मिलता है कि देवता भी भक्ति के बिना पूर्ण नहीं हैं।
