शारदीय नवरात्रि में हवन का महत्व और विधि
शारदीय नवरात्रि का पर्व मां दुर्गा की आराधना का एक महत्वपूर्ण अवसर है। इस दौरान हवन का विशेष महत्व होता है, जो भक्तों की साधना का अभिन्न हिस्सा है। दुर्गा अष्टमी और महानवमी के दिन कन्या पूजन के साथ हवन का आयोजन किया जाता है। इस लेख में हम जानेंगे कि हवन कैसे किया जाता है, इसके नियम और मंत्र क्या हैं। साथ ही, दुर्गा अष्टमी और महानवमी की तिथियों की जानकारी भी मिलेगी।
Sep 29, 2025, 05:17 IST
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नवरात्र: मां दुर्गा की पूजा का महापर्व
नवरात्र का पर्व
शारदीय नवरात्रि मां दुर्गा की आराधना का नौ दिवसीय पर्व है, जिसमें हवन का विशेष महत्व होता है। दुर्गा अष्टमी और महानवमी के दिन कन्या पूजन के साथ हवन का आयोजन किया जाता है। हवन के बिना नवरात्र की पूजा अधूरी मानी जाती है, क्योंकि इसे यज्ञ का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है, जिसके माध्यम से भक्त अपनी साधना को पूर्ण करते हैं और देवी को आहुति अर्पित करते हैं।
दुर्गा अष्टमी और महानवमी की तिथियाँ
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष दुर्गा अष्टमी 30 सितंबर को मनाई जाएगी। इसी दिन कन्या पूजन के साथ हवन भी किया जाएगा। वहीं, महानवमी का पर्व 01 अक्टूबर को मनाया जाएगा, और जो लोग नवमी तिथि का पालन करते हैं, वे इस दिन भी कन्या पूजन और हवन कर सकते हैं।
हवन करने के नियम
- हवन से पहले स्नान कर साफ वस्त्र पहनें।
- हवन कुंड या वेदी को स्वच्छ करें और पूजा सामग्री व्यवस्थित करें।
- हवन आरंभ करने से पहले हाथ में जल, फूल और चावल लेकर देवी मां के सामने हवन का संकल्प लें।
- देवी दुर्गा के नवार्ण मंत्र 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे' या दुर्गा सप्तशती के मंत्रों से आहुति दें।
- सभी देवी-देवताओं, नवग्रहों और अंत में मां दुर्गा को हवन सामग्री (जौ, तिल, चावल, घी, चीनी, गुग्गुल, आदि) की आहुति अर्पित करें।
- कम से कम 108 आहुति देना शुभ माना जाता है।
- हवन के अंत में, एक नारियल पर कलावा लपेटकर, उसमें सुपारी, सिक्का और अन्य सामग्री रखकर, उसे घी में डुबोकर, मंत्रों के साथ अग्नि को समर्पित करें। इसे पूणार्हुति कहा जाता है।
- हवन के बाद मां दुर्गा की आरती करें और पूजा में हुई किसी भी भूल के लिए क्षमा प्रार्थना करें।
- इसके बाद कन्या पूजन कर व्रत का पारण करें।
हवन पूजा के मंत्र
- ओम गणेशाय नम: स्वाहा
- ॐ केशवाय नम:
- ॐ नारायणाय नम:
- ॐ माधवाय नम:
- ओम गौरियाय नम: स्वाहा
- ओम नवग्रहाय नम: स्वाहा
- ओम दुर्गाय नम: स्वाहा
- ओम महाकालिकाय नम: स्वाहा
- ओम हनुमते नम: स्वाहा
- ओम भैरवाय नम: स्वाहा
- ओम कुल देवताय नम: स्वाहा
- ओम स्थान देवताय नम: स्वाहा
- ओम ब्रह्माय नम: स्वाहा
- ओम विष्णुवे नम: स्वाहा
- ओम शिवाय नम: स्वाहा
- ओम जयंती मंगलाकाली, भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा
- स्वधा नमस्तुति स्वाहा।
- ओम ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च: गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु स्वाहा।।
- ओम गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुदेर्वा महेश्वर: गुरु साक्षात् परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम: स्वाहा।
- ओम शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे, सर्व स्थार्ति हरे देवि नारायणी नमस्तुते।।
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