Newzfatafatlogo

संकष्टी चतुर्थी: भगवान गणेश की पूजा का विशेष दिन

संकष्टी चतुर्थी, भगवान गणेश को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत है, जो हर चंद्र माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य जीवन में आने वाली कठिनाइयों को दूर करना और सुख-समृद्धि की प्राप्ति करना है। जानें इस दिन की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और विशेष योग के बारे में।
 | 
संकष्टी चतुर्थी: भगवान गणेश की पूजा का विशेष दिन

भगवान गणेश को समर्पित व्रत


संकष्टी चतुर्थी का महत्व
यह व्रत भगवान गणेश को समर्पित है और इसे हिंदू पंचांग के अनुसार हर चंद्र माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य जीवन में आने वाली कठिनाइयों को दूर करना और सुख-समृद्धि की प्राप्ति करना है। आश्विन माह की शुरुआत 08 सितंबर से हो चुकी है, जो कि धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है।


संकष्टी चतुर्थी का शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 10 सितंबर को दोपहर 3:37 बजे शुरू होगी और 11 सितंबर को दोपहर 12:45 बजे समाप्त होगी। इस प्रकार, चतुर्थी का व्रत 10 सितंबर (बुधवार) को रखा जाएगा।


इस दिन सूर्य सिंह राशि में और चंद्रमा शाम 4:03 बजे तक मीन राशि में रहेंगे, इसके बाद वे मेष राशि में प्रवेश करेंगे। इस दिन वृद्धि और ध्रुव योग भी बन रहे हैं, जो इस दिन के महत्व को और बढ़ाते हैं।


शुभ योग और मुहूर्त

ज्योतिषियों के अनुसार, संकष्टी चतुर्थी के दिन कई शुभ योग बन रहे हैं, जैसे वृद्धि और ध्रुव योग।


मुहूर्त

  • ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04:31 से 05:18 तक
  • विजय मुहूर्त: दोपहर 02:23 से 03:12 तक
  • गोधूलि मुहूर्त: शाम 06:32 से 06:55 तक
  • निशिता मुहूर्त: रात 11:55 से 12:41 तक


संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि

पूजा विधि

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और पीले कपड़े पहनें।
  • चौकी पर कपड़ा बिछाकर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें।
  • लाल फूल, दूर्वा, रोली और चंदन अर्पित करें।
  • घी का दीपक जलाएं और आरती करें।
  • व्रत कथा का पाठ करें और मंत्रों का जप करें।
  • गणेश चालीसा का पाठ करें।
  • मोदक और लड्डू का भोग लगाएं।
  • जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करें।


संकष्टी चतुर्थी का महत्व

संकष्टी का अर्थ संकटों को दूर करने वाला होता है। मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक पूजा करने से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं। माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए यह व्रत करती हैं।


इस दिन पितरों को तर्पण और श्राद्ध करने से पितृ दोष दूर होता है, जिससे परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।