सिरसल गांव में रक्षाबंधन: एक दर्दनाक इतिहास की कहानी

सिरसल गांव का अनोखा रक्षाबंधन
सिरसल गांव में रक्षाबंधन का इतिहास: हरियाणा के कैथल जिले का सिरसल गांव एक विशेष परंपरा का प्रतीक है। जबकि पूरे देश में रक्षाबंधन भाई-बहन के रिश्ते का उत्सव है, सिरसल में यह दिन एक दुखद स्मृति के रूप में मनाया जाता है। यहां के निवासी इस पर्व को नहीं मनाते, और इसके पीछे एक ऐतिहासिक कारण है जो मुगल काल से जुड़ा हुआ है।
गांववासियों का मानना है कि जब मुगल सम्राट औरंगजेब का शासन था, तब सिरसल और उसके आस-पास के क्षेत्रों पर उसका नियंत्रण था। उस समय एक ग्रामीण के पास एक अत्यंत सुंदर घोड़ी थी, जिसकी चर्चा दूर-दूर तक फैली हुई थी। औरंगजेब ने उस घोड़ी को पाने के लिए ग्रामीण को दरबार में बुलाया और उसे धन का लालच दिया, लेकिन ग्रामीण ने मना कर दिया।
रक्षाबंधन के दिन हुआ नरसंहार
औरंगजेब का गुस्सा उस दिन अपने चरम पर पहुंच गया। उसने दरबार में उपस्थित सभी ग्रामीणों को बेरहमी से मार डाला। कुछ लोग जान बचाकर भागने में सफल रहे, लेकिन वे कभी गांव लौटकर नहीं आए। गांववाले बताते हैं कि यह भयानक घटना रक्षाबंधन के दिन हुई थी, जिसके कारण इस गांव में यह पर्व नहीं मनाया जाता।
यह परंपरा विशेष रूप से (Shandilya gotra) और (Turan gotra) के लोगों में आज भी जीवित है। वे इस दिन कोई उत्सव नहीं मनाते और न ही राखी बांधते हैं। हालांकि, गांव की अन्य जातियों के लोग रक्षाबंधन मनाते हैं, लेकिन इस गोत्र के लोगों के लिए यह दिन शोक का होता है।
द्रौपदी और कृष्ण की कहानी
रक्षाबंधन की शुरुआत की मान्यता महाभारत काल से जुड़ी है, जब द्रौपदी ने श्रीकृष्ण को राखी बांधी थी। लेकिन सिरसल गांव की कहानी इस त्योहार को एक अलग दृष्टिकोण से देखती है। यहां यह पर्व भाई की रक्षा का नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक त्रासदी की याद दिलाता है।
भारत में ऐसी परंपरा (Raksha Bandhan not celebrated) बहुत कम देखने को मिलती है। यह कहानी न केवल भावनात्मक है, बल्कि यह दर्शाती है कि इतिहास किस प्रकार वर्तमान परंपराओं को प्रभावित कर सकता है। सिरसल गांव आज भी उस दिन को याद करता है जब एक खूबसूरत घोड़ी के कारण कई निर्दोषों की जान चली गई।