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हरतालिका तीज: महिलाओं के लिए विशेष व्रत और इसका महत्व

हरतालिका तीज एक प्रमुख हिंदू व्रत है, जो विशेष रूप से महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। यह व्रत भाद्रपद मास की तृतीया तिथि को मनाया जाता है और इसका उद्देश्य पति की दीर्घायु और सुखद दांपत्य जीवन की प्राप्ति है। इस लेख में हम हरतालिका तीज की विधि, विशेषताएँ और इसके सांस्कृतिक महत्व के बारे में जानेंगे। जानें कैसे महिलाएँ इस दिन उपवास रखती हैं और अपने पति के लिए प्रार्थना करती हैं।
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हरतालिका तीज: महिलाओं के लिए विशेष व्रत और इसका महत्व

हरतालिका तीज का परिचय

हरतालिका तीज हिंदू धर्म में महिलाओं द्वारा मनाए जाने वाले प्रमुख व्रतों में से एक है। यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। विशेष रूप से उत्तर भारत, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार में इसे बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस व्रत का उद्देश्य अखंड सौभाग्य, पति की दीर्घायु और सुखद दांपत्य जीवन की प्राप्ति है।


हरतालिका तीज व्रत की विधि

इस व्रत की शुरुआत प्रातः स्नान करके, स्वच्छ वस्त्र पहनकर और भगवान शिव-पार्वती की पूजा से होती है।


महिलाएँ इस दिन निर्जला उपवास रखती हैं, जिसका अर्थ है कि वे जल भी ग्रहण नहीं करतीं।


भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की मिट्टी या धातु की प्रतिमा बनाकर उनकी पूजा की जाती है।


पूजा में बेलपत्र, धतूरा, चंदन, पुष्प, धूप-दीप और मिठाइयाँ अर्पित की जाती हैं।


रात में कथा सुनने और भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है।


अगली सुबह ब्राह्मणों, कन्याओं या जरूरतमंदों को भोजन और दान देकर व्रत का समापन किया जाता है।


विशेषताएँ और सांस्कृतिक महत्व

महिलाएँ इस दिन नए वस्त्र और गहने पहनती हैं और मेहंदी लगाती हैं। तीज के गीत, नृत्य और झूले इस उत्सव का खास आकर्षण होते हैं। विवाहित महिलाएँ अपने पति की लंबी उम्र के लिए और अविवाहित कन्याएँ अच्छे वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं।


हरतालिका तीज केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि पारिवारिक और सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। यह पति-पत्नी के बीच प्रेम और समर्पण का प्रतीक है और नारी शक्ति की दृढ़ इच्छाशक्ति और तपस्या का संदेश भी देती है।


हरतालिका तीज व्रत कथा

एक बार भगवान शंकर ने माता पार्वती से कहा कि तुमने पर्वतराज हिमालय पर गंगा के तट पर बारह वर्षों तक कठोर तप किया था। तुम्हारी तपस्या को देखकर तुम्हारे पिता चिंतित थे। एक दिन नारदजी तुम्हारे घर आए और उन्होंने बताया कि भगवान विष्णु तुम्हारे साथ विवाह करना चाहते हैं।


यह सुनकर तुम्हारे पिता खुश हुए, लेकिन जब तुम्हें इस विवाह की जानकारी मिली, तो तुम दुखी हो गईं। तुम्हारी सहेली ने तुम्हें समझाया और तुम घनघोर जंगल में साधना करने चली गईं।


भाद्रपद शुक्ल तृतीया को तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण करके व्रत किया और रातभर मेरी स्तुति की। तुम्हारी तपस्या से मैं प्रसन्न होकर तुम्हारे पास आया और तुमने मुझे अपने पति के रूप में स्वीकार किया।


तब मैंने तुम्हें तथास्तु कहा और कैलाश पर्वत पर लौट आया। तुम्हारे पिता ने तुम्हारी तपस्या को समझा और तुम्हारा विवाह भगवान शिव से संपन्न कराया।