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हल षष्ठी: भगवान बलरामजी का जन्मोत्सव और विशेष व्रत

हल षष्ठी पर्व भगवान बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है, जिसमें विशेष व्रत का आयोजन किया जाता है। इस दिन महिलाएं संतान की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए पूजा करती हैं। जानें इस पर्व की विशेषताएँ, व्रत की विधि और प्राचीन कथा, जो इस पर्व के महत्व को दर्शाती है।
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हल षष्ठी: भगवान बलरामजी का जन्मोत्सव और विशेष व्रत

हल षष्ठी का पर्व

हल षष्ठी का पर्व भगवान बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसे हल षष्ठी कहा जाता है क्योंकि बलरामजी का प्रमुख शस्त्र हल और मूसल है। इस दिन किसानों के लिए हल पूजा का विशेष महत्व होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में इस त्योहार की धूमधाम होती है और मंदिरों में भगवान बलरामजी की पूजा की जाती है। बलरामजी, भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई हैं, जिनका जन्म जन्माष्टमी से कुछ दिन पहले हुआ था।


व्रत की विधि

यह व्रत मुख्य रूप से पुत्रवती महिलाएं करती हैं। इस व्रत के माध्यम से उनकी संतान स्वस्थ और दीर्घायु होती है। व्रत करने वाली महिलाओं के लिए इस दिन गाय के दूध और दही का सेवन करना वर्जित होता है। महिलाएं प्रातःकाल उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर आंगन को लीपकर या साफ करके वहां एक छोटा तालाब बनाती हैं। तालाब में झरबेरी, ताश और पलाश की एक-एक शाखा बांधकर हरछठ को गाड़ा जाता है। इसके बाद विधिपूर्वक पूजा की जाती है। पूजा के बाद भैंस के दूध से बने मक्खन से हवन किया जाता है और भगवान से सुख और स्वास्थ्य की प्रार्थना की जाती है। इसके बाद ध्यान लगाकर कथा सुननी चाहिए।


प्राचीन कथा

कथा− प्राचीन काल में एक गर्भवती महिला थी, जिसे प्रसव पीड़ा शुरू हो गई थी। लेकिन उसका ध्यान इस बात पर था कि उसने गाय और भैंस का जो दूध निकाला है, उसका क्या होगा। प्रसव पीड़ा के बावजूद, उसने दूध बेचने का निर्णय लिया और दूध के घड़े सिर पर रखकर चल पड़ी। रास्ते में उसकी प्रसव पीड़ा बढ़ गई और उसने पेड़ों की ओट में एक सुंदर बच्चे को जन्म दिया। लेकिन वह बच्चे को वहीं छोड़कर दूध बेचने चली गई।


बच्चे की विपत्ति

उधर, नवजात बच्चे की विपत्तियां कम नहीं हो रही थीं। उसकी मां ने उसे जंगल में अकेला छोड़ दिया था और पास के खेत में काम कर रहे बैल भड़क गए, जिससे हल का फल बच्चे के सीने में धंस गया और उसकी मृत्यु हो गई। किसान ने जब यह देखा, तो उसने बच्चे के सीने में टांके लगाए और उसे वहीं छोड़ दिया।


प्रायश्चित

जब नवजात की मां वहां पहुंची और बच्चे को इस हालत में देखा, तो उसे समझ आ गया कि यह सब उसके पापों की सजा है। उसने गांव में जाकर अपनी आपबीती सुनाई कि कैसे उसने झूठ बोलकर दूध बेचा और उसके नवजात बच्चे की मृत्यु हो गई। लोगों ने उसकी बात सुनकर उसे माफ किया और आशीर्वाद दिया।


सच्चाई का संकल्प

जब वह ग्वालिन वापस उसी स्थान पर पहुंची जहां उसने अपने बच्चे को छोड़ा था, तो उसे आश्चर्य हुआ कि उसका बच्चा जीवित है। उस क्षण उसने निर्णय लिया कि वह आगे से कभी भी झूठ नहीं बोलेगी और झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान समझेगी।