Coldrif Cough Syrup से बच्चों की मौत: क्या है भारत की दवा नियामक प्रणाली की खामियां?

Coldrif कफ सिरप से हुई बच्चों की रहस्यमयी मौतें
Coldrif Cough Syrup Deaths : भारत के विभिन्न क्षेत्रों में छोटे बच्चों की रहस्यमयी मौतों ने देश को हिला कर रख दिया है। यह चिंता का विषय बना है एक कफ सिरप Coldrif, जिसे चेन्नई की श्रीसन फार्मास्यूटिकल्स ने बनाया था। हाल ही में पता चला है कि इस सिरप के सेवन से मध्य प्रदेश और राजस्थान में लगभग 20 बच्चों की जानें गईं, और इसके पीछे निर्माता की लापरवाही और नियामक तंत्र की कमजोरी का बड़ा हाथ है।
गाइडलाइंस की अनदेखी
सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (CDSCO) ने 2023 में स्पष्ट निर्देश जारी किए थे कि जिन सिरप में क्लोर्फेनिरामिन मेलिएट IP 2mg और फेनिलईफ्रिन HCL IP 5mg का फिक्स्ड डोज कॉम्बिनेशन (FDC) हो, उन्हें चार साल से कम उम्र के बच्चों को नहीं दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही यह भी कहा गया था कि यह चेतावनी पैकेजिंग पर स्पष्ट रूप से लिखी जाए।
हालांकि, श्रीसन फार्मा ने इस आदेश की अनदेखी की और लेबल पर कोई चेतावनी नहीं दी, जिससे डॉक्टरों और अभिभावकों को इसके खतरों का पता नहीं चला। नतीजतन, वही सिरप बच्चों को दिया गया और उनके जीवन का अंत हो गया।
नियामक प्रणाली की विफलता
यह केवल एक कंपनी की लापरवाही नहीं है, बल्कि स्वास्थ्य तंत्र की बहुस्तरीय विफलता भी सामने आई है:
• निर्माता द्वारा केंद्रीय निर्देशों की अनदेखी
• राज्य ड्रग कंट्रोल अधिकारियों की कमजोर निगरानी
• डॉक्टरों द्वारा प्रिस्क्रिप्शन प्रोटोकॉल का पालन न करना
इन सभी चूकों ने मिलकर एक ऐसा वातावरण तैयार किया, जहां बच्चों की सुरक्षा पूरी तरह से दांव पर लग गई।
भारतीय दवा नियामक व्यवस्था पर सवाल
इस घटना ने भारत की विभाजित फार्मा नियामक प्रणाली की खामियों को उजागर किया है। विशेषज्ञों का कहना है कि अक्सर केंद्रीय स्तर पर जारी निर्देश राज्यों और निर्माताओं द्वारा अनदेखे कर दिए जाते हैं, जिससे ऐसे हादसे होते हैं। पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट दिनेश ठाकुर ने सरकार की जन विश्वास बिल 2023 की आलोचना की है। इस नए कानून में घटिया दवा के कारण यदि किसी को नुकसान होता है, तो कंपनी पर आपराधिक सजा की जगह केवल आर्थिक जुर्माना लगाया जाएगा।
दवा कंपनियों को मिली छूट
इतना ही नहीं, Pharmacy Act, 1948 की धारा 42 को भी इस बिल ने 'डिक्रिमिनलाइज' कर दिया है, जिससे पहले जो गलती पर छह महीने की जेल हो सकती थी, वह अब केवल एक लाख रुपये के जुर्माने तक सीमित रह गई है। इससे दवा कंपनियों को खुली छूट मिलती दिख रही है।
यह मामला न केवल निर्माताओं की लापरवाही का उदाहरण है, बल्कि यह बताता है कि जब तक नियामक तंत्र कठोर और जवाबदेह नहीं होगा, तब तक आम नागरिक, खासकर बच्चे, ऐसी लापरवाहियों का शिकार होते रहेंगे। Coldrif सिरप जैसी घटनाएं हमें याद दिलाती हैं कि सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर कानूनों का ढीला होना, किसी भी समाज के लिए कितनी बड़ी कीमत पर पड़ सकता है।