ADB की रिपोर्ट: भारत की जीडीपी वृद्धि पर नए अनुमान

ADB की जीडीपी वृद्धि पर रिपोर्ट
ADB की भारत जीडीपी वृद्धि भविष्यवाणी: एशियाई विकास बैंक (ADB) ने अपनी एशियन डेवलपमेंट आउटलुक रिपोर्ट में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए नए अनुमान प्रस्तुत किए हैं। पहले तिमाही में 7.8% की मजबूत वृद्धि के बाद, अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव से आगे के महीनों में कुछ चुनौतियाँ आ सकती हैं। हालांकि, घरेलू मांग, सेवाओं का निर्यात और सरकारी खर्च इस प्रभाव को कुछ हद तक संतुलित करने में मदद करेंगे।
अमेरिकी आयात शुल्क का प्रभाव
रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2026 की दूसरी छमाही में अमेरिकी आयात शुल्क का प्रभाव अधिक स्पष्ट होगा। अप्रैल में ADB ने जीडीपी वृद्धि का अनुमान 7% लगाया था, जिसे अब घटाकर 6.5% कर दिया गया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि नेट एक्सपोर्ट्स की हिस्सेदारी पहले के अनुमान से कम होगी। फिर भी, भारत की जीडीपी में निर्यात का हिस्सा सीमित होने के कारण, अन्य देशों को निर्यात और सेवा क्षेत्र मजबूत बने रहने से प्रभाव कम होगा।
घाटे की चिंता
फिस्कल डेफिसिट 4.4% के बजट अनुमान से अधिक जाने की संभावना जताई गई है। जीएसटी में कटौती के कारण टैक्स संग्रह में कमी आने की आशंका है, जबकि सरकारी खर्च स्थिर रहेगा। चालू खाते का घाटा FY25 के 0.6% से बढ़कर FY26 में 0.9% और FY27 में 1.1% तक पहुंच सकता है। हालांकि, कच्चे तेल की कीमतों में कमी से आयात का दबाव कुछ हद तक कम होगा।
महंगाई में उतार-चढ़ाव
ADB ने FY26 के लिए महंगाई का अनुमान घटाकर 3.1% कर दिया है, क्योंकि खाद्य कीमतों में तेजी से गिरावट आई है। वहीं, FY27 में खाद्य कीमतें सामान्य स्तर पर लौटने से महंगाई फिर से बढ़ने की संभावना है। आरबीआई ने रेपो रेट को घटाकर 5.5% कर दिया है और सीआरआर में भी कटौती की है, जिससे बाजार में लिक्विडिटी बढ़ी है। इसके परिणामस्वरूप नए ऋण पर ब्याज दरें कम हुई हैं और सरकारी बॉंड की यील्ड भी नीचे आई है।
राजस्व और निवेश की चुनौतियाँ
केंद्रीय सरकार की आय और व्यय में बड़ा अंतर देखा गया है। FY26 के पहले चार महीनों में टैक्स राजस्व में 7.5% की गिरावट आई है, जबकि खर्च में 20% से अधिक की वृद्धि हुई है। पूंजीगत व्यय में 32% की वृद्धि और करंट एक्सपेंडिचर में 17% की बढ़ोतरी हुई है। वैश्विक अनिश्चितताओं के कारण प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का प्रवाह भी धीमा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय रिजर्व मजबूत बने रहेंगे, लेकिन घाटा और पूंजी प्रवाह की कमी चुनौतियाँ बनी रहेंगी।