इलाहाबाद हाई कोर्ट की लिव-इन रिलेशनशिप पर टिप्पणी: महिलाओं की स्थिति पर चिंता

लिव-इन रिलेशनशिप पर हाई कोर्ट की टिप्पणी
इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक न्यायाधीश ने लिव-इन रिलेशनशिप से जुड़े एक मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। जस्टिस सिद्धार्थ ने एक आरोपी को जमानत देते हुए कहा कि महिलाओं के लिए ब्रेकअप के बाद नए साथी को खोजना कठिन हो जाता है, जबकि पुरुषों के लिए यह प्रक्रिया अपेक्षाकृत आसान होती है।
महिलाओं के लिए लिव-इन रिलेशनशिप की चुनौतियाँ
जस्टिस सिद्धार्थ ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप को मान्यता दी है, लेकिन इसके परिणामस्वरूप ऐसे मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है। ये मामले इसलिए सामने आ रहे हैं क्योंकि लिव-इन रिलेशनशिप भारतीय समाज की पारंपरिक धारणाओं के अनुरूप नहीं है, और यह महिलाओं के खिलाफ है।'
ब्रेकअप के बाद महिलाओं की कठिनाइयाँ
उन्होंने आगे कहा कि महिलाएं लिव-इन पार्टनर से ब्रेकअप के बाद गंभीर मानसिक तनाव का सामना करती हैं। उन्हें अपने लिए जीवनसाथी ढूंढने में कठिनाई होती है, जबकि पुरुषों को इस स्थिति से कोई खास फर्क नहीं पड़ता। जस्टिस ने यह भी बताया कि युवा पीढ़ी लिव-इन में रहना पसंद करती है, लेकिन इसके दुष्परिणाम गंभीर हो सकते हैं।
मामले का संक्षिप्त विवरण
इस मामले में एक महिला ने शाने आलम नामक युवक के खिलाफ याचिका दायर की थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि आलम ने शादी का झांसा देकर उसका यौन शोषण किया। लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के बाद आलम ने शादी करने से इनकार कर दिया, जिसके बाद महिला ने उसके खिलाफ मामला दर्ज कराया।
सुप्रीम कोर्ट की पूर्व टिप्पणी
जनवरी 2025 में, सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि यदि कोई महिला लंबे समय तक अपने साथी के साथ रह रही है, तो वह यह दावा नहीं कर सकती कि उसे शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर किया गया। इसके अलावा, वह बाद में अपने साथी के खिलाफ बलात्कार का मामला भी दर्ज नहीं करा सकती।