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भारत के आईटी क्षेत्र पर अमेरिकी टैरिफ का संभावित प्रभाव

भारत का आईटी क्षेत्र अमेरिकी टैरिफ की आशंका से चिंतित है, जो पहले से ही वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं का सामना कर रहा है। ट्रंप प्रशासन द्वारा सॉफ्टवेयर निर्यात पर संभावित टैरिफ से भारतीय कंपनियों को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। अमेरिका में भारतीय आईटी कंपनियों का महत्व और उनके लिए संभावित डबल टैक्सेशन की समस्या पर चर्चा की गई है। क्या यह कदम भारतीय आईटी उद्योग को प्रभावित करेगा? जानें इस लेख में।
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भारत के आईटी क्षेत्र पर अमेरिकी टैरिफ का संभावित प्रभाव

अमेरिकी टैरिफ की आशंका

भारत का सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र, जो पहले से ही वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं और एआई-आधारित ऑटोमेशन की बढ़ती स्वीकार्यता से प्रभावित है, अब अमेरिका के ट्रंप प्रशासन द्वारा सॉफ्टवेयर निर्यात पर संभावित टैरिफ की चिंता में है। यह कदम भारत के 283 अरब डॉलर के तकनीकी सेवा आउटसोर्सिंग उद्योग, जिसमें टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), इन्फोसिस, एचसीएलटेक और विप्रो जैसी प्रमुख कंपनियां शामिल हैं, के लिए गंभीर चुनौतियां उत्पन्न कर सकता है.


अमेरिका में भारतीय आईटी कंपनियों का महत्व

रिपोर्टों के अनुसार, अमेरिका भारतीय आईटी कंपनियों का सबसे बड़ा बाजार है, जहां ये कंपनियां अपनी आय का 60% से अधिक हिस्सा प्राप्त करती हैं। हाल ही में, ट्रंप के सीनियर व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर आउटसोर्सिंग और विदेशी रिमोट कर्मचारियों पर टैरिफ लगाने का सुझाव दिया।


भारतीय आईटी क्षेत्र पर संभावित प्रभाव

भारतीय आईटी क्षेत्र पर क्यों पड़ सकता है असर?


अमेरिकी रूढ़िवादी टिप्पणीकार जैक पॉसोबिएक ने भी इस मुद्दे पर अपनी राय व्यक्त की है, जिसमें उन्होंने कहा कि देशों को अमेरिका को रिमोट सेवाएं प्रदान करने के लिए उसी तरह भुगतान करना चाहिए जैसे वे वस्तुओं के लिए करते हैं। यदि यह नीति लागू होती है, तो भारत और अन्य समान देशों से सेवाएं लेने वाले सभी तकनीकी सेवा ग्राहक प्रभावित हो सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम भारतीय आईटी कंपनियों के लिए डबल टैक्सेशन का कारण बन सकता है, क्योंकि ये कंपनियां पहले से ही अमेरिका में भारी टैक्स का भुगतान करती हैं।


वीजा नियमों में सख्ती से बढ़ेगी लागत

वीजा नियमों में सख्ती से बढ़ेगी लागत


टैरिफ के साथ-साथ वीजा नियमों में संभावित सख्ती भी भारतीय आईटी कंपनियों के लिए एक चुनौती बन सकती है। सख्त वीजा नियमों के कारण कंपनियों को अमेरिका या उसके आस-पास के क्षेत्रों में स्थानीय भर्ती करनी पड़ सकती है, जिससे परिचालन लागत में वृद्धि होगी। इससे कंपनियों के लाभ मार्जिन पर दबाव पड़ सकता है, खासकर जब वैश्विक मांग पहले से ही कमजोर है।


क्या ट्रंप वास्तव में लगाएंगे टैरिफ?

क्या ट्रंप वास्तव में लगाएंगे टैरिफ?


एचएफएस ग्रुप के सीईओ फिल फर्स्ट का कहना है कि भारत के आउटसोर्सिंग क्षेत्र पर टैरिफ की चर्चा अधिक राजनीतिक संदेशवाहन है, न कि वास्तविक नीतिगत इरादा। वे आगे कहते हैं कि डिजिटल श्रम प्रवाह पर शुल्क लगाना वस्तुओं पर कर लगाने से कहीं अधिक जटिल है। अमेरिका अपनी तकनीकी अर्थव्यवस्था को प्रतिस्पर्धी बनाए रखने के लिए भारत के आईटी और इंजीनियरिंग प्रतिभा पर बहुत अधिक निर्भर है।


इसके अलावा, कई तकनीकी अरबपति, जो ट्रंप प्रशासन पर महत्वपूर्ण प्रभाव रखते हैं, भारत के पक्ष में हैं, क्योंकि उनके वैश्विक कारोबार भारतीय इंजीनियरिंग प्रतिभा, डिलीवरी क्षमता और बाजार पहुंच पर निर्भर हैं।


US में पहले से ही कंपनियां काफी टैक्सों का कर रही भुगतान

US में पहले से ही कंपनियां काफी टैक्सों का कर रही भुगतान


एवरेस्ट ग्रुप के पार्टनर युगल जोशी ने कहा कि ये कंपनियां अमेरिका में पहले से ही काफी टैक्सों का भुगतान करती हैं, इसलिए टैरिफ दोहरा टैक्सेशन होगा। यह भारत-आधारित सेवा प्रदाताओं और यहां तक कि जीसीसी (ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स) के विकास को और नुकसान पहुंचाएगा, अगर उन पर भी टैरिफ लगाया गया।