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भारत ने सावलकोट हाइड्रो इलेक्ट्रिक परियोजना को पुनर्जीवित किया

भारत ने 40 साल से ठप सावलकोट हाइड्रो इलेक्ट्रिक परियोजना को पुनर्जीवित करने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। यह परियोजना जम्मू-कश्मीर के रामबन जिले में चिनाब नदी पर स्थित है और इसे भारत की ऊर्जा आत्मनिर्भरता के लिए एक मील का पत्थर माना जा रहा है। हाल ही में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि को आंशिक रूप से रोकने का निर्णय लिया था। इस परियोजना के माध्यम से न केवल बिजली संकट कम होगा, बल्कि क्षेत्रीय विकास को भी बढ़ावा मिलेगा।
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भारत ने सावलकोट हाइड्रो इलेक्ट्रिक परियोजना को पुनर्जीवित किया

सावलकोट परियोजना का पुनरारंभ

भारत ने 40 वर्षों से रुकी हुई सावलकोट हाइड्रो इलेक्ट्रिक परियोजना को फिर से शुरू करने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। यह परियोजना जम्मू-कश्मीर के रामबन जिले में चिनाब नदी पर स्थित है, और इसके लिए नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन (NHPC) ने अंतरराष्ट्रीय टेंडर जारी किए हैं। 1856 मेगावाट की क्षमता वाली यह परियोजना भारत की ऊर्जा आत्मनिर्भरता और रणनीतिक मजबूती के लिए एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है.


सुरक्षा के संदर्भ में निर्णय

यह निर्णय ऐसे समय में लिया गया है जब हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि को आंशिक रूप से रोकने का निर्णय लिया था। इसके तहत भारत उन परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ा रहा है, जिन पर पाकिस्तान ने वर्षों तक आपत्ति जताई थी.


40 साल पुरानी योजना को मिली नई गति

सावलकोट परियोजना का प्रारंभिक खाका 1980 के दशक में तैयार किया गया था। कुछ सीमित कार्य शुरू हुए, लेकिन 1996 में इसे रोक दिया गया। फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला ने इसे पुनर्जीवित करने की कोशिश की, लेकिन प्रशासनिक और पर्यावरणीय बाधाएं आड़े आईं। मुफ़्ती मोहम्मद सईद की सरकार के दौरान इसे पूरी तरह से ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था.


परियोजना की विशेषताएँ

सावलकोट पनबिजली परियोजना एक रन-ऑफ-रिवर प्रोजेक्ट है, जो नदी के प्राकृतिक प्रवाह से बिजली उत्पन्न करेगी। इस परियोजना पर अनुमानित खर्च 22,704.8 करोड़ रुपये है और इसे दो चरणों में विकसित किया जाएगा। हाल ही में सरकार ने इसके लिए कई बाधाओं को दूर किया है। वन सलाहकार समिति (FAC) ने 847 हेक्टेयर वन भूमि के स्थानांतरण की सैद्धांतिक मंजूरी दी है, और NHPC को जल उपकर में छूट भी प्रदान की गई है.


स्थानीय मुद्दों का समाधान

परियोजना को शुरू करने में सबसे बड़ी बाधा स्थानीय विस्थापन, मुआवज़ा और पर्यावरणीय मंजूरियां रही हैं। 13 गांवों के लोगों को मुआवजा देना, रामबन में सेना के ट्रांजिट कैंप को स्थानांतरित करना, और वन भूमि का उपयोग जैसी समस्याओं पर अब सरकार ने सकारात्मक कदम उठाए हैं। इसके बाद NHPC ने आधिकारिक रूप से टेंडर प्रक्रिया शुरू की है, और टेंडर जमा करने की अंतिम तारीख 10 सितंबर निर्धारित की गई है.


सिंधु जल संधि का संदर्भ

1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई सिंधु जल संधि के तहत भारत को ब्यास, रावी और सतलुज नदियों पर नियंत्रण दिया गया था, जबकि पाकिस्तान को सिंधु, चिनाब और झेलम नदियों का नियंत्रण मिला। हालांकि, भारत को इन पश्चिमी नदियों से सीमित मात्रा में पानी उपयोग करने की अनुमति थी। पाकिस्तान ने बार-बार इन परियोजनाओं पर आपत्ति जताई है, जिससे कई योजनाएं अधर में लटकी रहीं.


पाकिस्तान को कूटनीतिक संदेश

भारत का यह कदम केवल ऊर्जा उत्पादन के लिए नहीं है, बल्कि यह पाकिस्तान को एक स्पष्ट कूटनीतिक संदेश भी है कि भारत अब अपने अधिकारों का पूरी तरह से उपयोग करेगा। इस परियोजना के माध्यम से न केवल जम्मू-कश्मीर में बिजली संकट कम होगा, बल्कि क्षेत्रीय विकास को भी बढ़ावा मिलेगा.