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भारत-पाकिस्तान सिंधु जल संधि पर नया विवाद: राजनीतिक और कूटनीतिक पहलू

भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि एक बार फिर विवाद का केंद्र बन गई है। हाल की घटनाओं ने इसे राजनीतिक मुद्दा बना दिया है, जिसमें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और सेना प्रमुख के बयान शामिल हैं। क्या ये बयान जल संकट की चिंता से प्रेरित हैं या घरेलू राजनीतिक दबावों से ध्यान हटाने का प्रयास? जानें इस जटिल मुद्दे के विभिन्न पहलुओं के बारे में।
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सिंधु जल संधि का नया विवाद

भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि एक बार फिर विवाद का विषय बन गई है, लेकिन इस बार यह केवल जल के मुद्दे तक सीमित नहीं है। हाल की घटनाओं ने स्पष्ट किया है कि यह मामला अब कूटनीतिक से अधिक राजनीतिक हो गया है। भारत ने 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद संधि को "निलंबित" करने का निर्णय लिया, जबकि पाकिस्तान की ओर से लगातार भड़काऊ प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।


प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने इस्लामाबाद में एक कार्यक्रम में कहा कि भारत पाकिस्तान को मिलने वाला "एक बूँद" पानी भी नहीं रोक सकता। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि ऐसा हुआ, तो यह युद्ध के समान होगा। यह बयान उस समय आया है जब पाकिस्तान की जनता बिजली संकट, महंगाई और खाद्य सुरक्षा जैसी गंभीर समस्याओं का सामना कर रही है।


विश्लेषकों का मानना है कि यह बयान जल संकट के प्रति चिंता से अधिक घरेलू राजनीतिक दबावों से ध्यान हटाने का प्रयास है। पाकिस्तान के नेता पानी को ‘राष्ट्रीय अस्मिता’ से जोड़कर जनता की भावनाओं को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं।


पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल असीम मुनीर ने अमेरिका में बसे पाकिस्तानी समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि यदि भारत ने पाकिस्तान की ओर बहाव रोकने के लिए कोई बांध बनाया, तो इस्लामाबाद उसे नष्ट कर देगा। उनका यह बयान न केवल पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय छवि को प्रभावित करता है, बल्कि क्षेत्रीय शांति के लिए भी चिंता का विषय है।


भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित करने का निर्णय 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद लिया था, जिसमें 26 नागरिकों की जान गई थी। इसके बाद भारत ने 7 मई को 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत पाकिस्तान और पीओके में आतंकी ढांचों को निशाना बनाया। चार दिन की क्रॉस-बॉर्डर स्ट्राइक और ड्रोन हमलों के बाद 10 मई को दोनों देशों ने युद्ध विराम पर सहमति जताई।