अफगानिस्तान में भूकंप: महिलाओं की सहायता में बाधाएं और तालिबान की नीतियां
भूकंप का विनाशकारी प्रभाव
अफगानिस्तान ने हाल ही में एक भयानक भूकंप का सामना किया, जिसने हजारों लोगों की जान ले ली। मलबे में कई लोग जीवित थे और सहायता की प्रतीक्षा कर रहे थे, लेकिन तालिबान के कठोर नियमों के कारण महिलाओं की सहायता में राहतकर्मियों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इस लेख में हम इस दुखद घटना और अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति पर विस्तार से चर्चा करेंगे।तालिबान के नियमों का प्रभाव
तालिबान की सरकार ने महिलाओं के अधिकारों पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं, जो आपातकालीन स्थितियों में भी राहत कार्यों को प्रभावित करते हैं। कुनार प्रांत के आंदरलुकाक गांव की बीबी आयशा का मामला इस समस्या को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। वह 36 घंटे तक मलबे में दबी रहीं और मदद के लिए आवाज लगाती रहीं, लेकिन तालिबानी आदेश के कारण पुरुष बचावकर्मियों ने उन्हें छूने से मना कर दिया। महिला बचावकर्मियों की संख्या भी बहुत कम है, जिससे स्थिति और जटिल हो गई।
भेदभावपूर्ण राहत कार्य
भूकंप के बाद राहत कार्यों में पुरुषों और किशोरों को तो निकाला गया, लेकिन महिलाओं और लड़कियों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया। कई बार बच्चों को भी इस भेदभाव का सामना करना पड़ा। यह भेदभाव मानवता के खिलाफ है और इसे वैश्विक समुदाय द्वारा गंभीरता से लिया जाना चाहिए। तालिबान की यह नीति न केवल मानवीय दृष्टि से गलत है, बल्कि यह अफगानिस्तान के सामाजिक और आर्थिक पुनर्निर्माण में भी बाधा डालती है।
महिलाओं पर पाबंदियों का प्रभाव
तालिबान शासन के तहत अफगानिस्तान की महिलाओं पर कई प्रकार की पाबंदियां लागू हैं। इनमें शिक्षा, यात्रा, रोजगार और सार्वजनिक जीवन में भागीदारी शामिल हैं। लड़कियों को छठी कक्षा के बाद पढ़ाई करने की अनुमति नहीं है, और महिलाएं बिना पुरुष वारिस के यात्रा नहीं कर सकतीं। इन प्रतिबंधों ने महिलाओं के जीवन को सीमित कर दिया है और उनके विकास की संभावनाओं को दबा दिया है। इस सख्त रूढ़िवादिता के कारण आपदाओं के समय भी महिलाओं को उचित सहायता नहीं मिल पाती।